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________________ १५८ ककककक तीर्थंकर चरित्र - भाग ३ Possess their ep 1 TFSss as bts the spre®FF घोरतम आशातना से तू महापापी तो हुआ ही है, साथ ही शकेन्द्र के कोप का भाजन भी बना । ये प्रभु तो शान्त हैं । तेरे प्रति इनमें कोई द्वेष नहीं है । परन्तु अपनी आत्मा का हित चाहता हो, तो भक्तिपूर्वक क्षमा माँग और मिथ्यात्व के विष को उगल कर शुद्ध सम्यक्त्व अंगीकार कर। इसी से तेरा उद्धार होगा । शूलपाणि भगवान् के चरणों में गिरा, बार-बार क्षमा मांगी और अपने सभी पापों का पश्चात्ताप कर सम्यक्त्वी बना । प्रभु का यह घोर उपसर्ग दूर हुआ । सिद्धार्थ द्वारा अच्छन्दक का पाखण्ड खुला + भगवान् ने वह चातुर्मास अस्थिक ग्राम में ही किया और अर्द्धमासिक तर आठ बार कर के शातिपूर्वक वर्षाकाल पूर्ण किया । भगवान् विहार करने लगे, तब शूलपाणि यक्ष आया और भगवान् को वन्दना कर के अपना अपराध पुनः खमाया और गद्गद् हो कर बोला - " स्वामिन् ! आपने इस महापापो का उद्धार कर दिया। स्वयं भीषण यातना सहन कर ली और बिना उपदेश के ही मेरी पापी प्रवृत्ति छुड़ा दी । धन्य हे प्रभो !" दीक्षाकाल का एक वर्ष पूरा होने के बाद भगवान् पुनः मोराक ग्राम के बाहर बगीचे में पधार कर प्रतिमा धारण कर के ध्यानस्थ हो गए। उस ग्राम में 'अच्छन्दक नाम का एक पाखण्डी रहता था। वह मन्त्र तन्त्र कर के लोगों पर अपनी धाक जमाये हुए था। उसकी आजीविका भी इस पाखण्ड के आधार पर चल रही थी। उसके दम्भपूर्ण पाखण्ड को सिद्धार्थ व्यन्तर सहन नहीं कर सका। उसने अच्छन्दक का पाखण्ड खुला करने का ठान लिया । " एक ग्वाला उधर से हो कर जा रहा था । सिद्धार्थ ने उसे निकट बुलाया और प्रच्छन्न रह कर बोला- " आज तुने सोबीर सहित कांग खाया है। तू बैल चराने घर से निकला, तो मार्ग साँप देखा और गई रात को तू स्वप्न में खूब रोया था ? बोल ये बातें सत्य है ? " 7 ग्रन्थकार और कल्पसूत्र टीका आदि में शूलपाणि के उपद्रव के बाद भगवान् को दस स्वप्न आने का उल्लेख है । किन्तु भगवती सूत्र श. १६ उ. ६ में ये दस स्वप्न छद्मस्थता की अन्तिम रात्रि में आने का स्पष्ट उल्लेख है । ग्रन्थकार एवं टाकाकारों के ध्यान में यह बात थी। परन्तु वे इसका अर्थ ' रात्रि के अन्तिम भाग में ' करते हैं। हमें यह उपयुक्त नहीं लगा। अतएव इनका बाद में उल्लेख करेंगे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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