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________________ १४४ तीर्थकर चरित्र-भाग ३ एकककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक्ष करूँगा । छह काया के जीवों को विराधना नहीं करूँगा और रात्रि भोजन नहीं करूँगा। मैं भोजनपान भी अचित्त ही करूँगा और ध्यान-कायोत्सर्गादि करता रहूँगा।" वर्षीदान और लोकान्तिक देवों द्वारा उद्बोधन इस प्रकार गृहवास में भी त्यागी के समान जीवन व्यतीत करते भगवान् को एक वर्ष व्यतीत हो गया, तब भगवान् ने वर्षीदान दिया। प्रतिदिन प्रातःकाल एक करोड़ आठ लाख स्वर्णमुद्राओं का दान करने लगे । इस प्रकार एक वर्ष में तीन अरब अठासी करोड़ अस्सी लाख सोने के सिक्कों का दान किया। यह धन शक्रेन्द्र के आदेश से कुबेर ने मुंभक देवों द्वारा राज्यभंडार में रखवाया। जो धन पीढ़ियों से भूमि में दबा हुआ हो, जिसका कोई स्वामी नहीं रहा हो, वैसे धन को निकाल कर मुंभक देव लाते हैं और वह जिनेश्वरों द्वारा दान किया जाता है । अब दो वर्ष की अवधि भी पूर्ण हो रही थी। लोकान्तिक देवों ने आ कर भगवान् को नमस्कार किया और बड़े ही मनोहर, मधुर, प्रिय, इष्ट एवं कल्याणकारी शब्दों में निवेदन किया;-- . "जय हो, विजय हो भगवन् ! आपका जय-विजय हो । हे क्षत्रियश्रेष्ठ ! आपका भद्र हो, कल्याण हो । हे लोकेश्वर लोकनाथ ! अब आप सर्वविरत होवें । हे तीर्थेश्वर ! धर्म-तीर्थ का प्रवर्तन कर के संसार के समस्त जीवों के लिए हितकारी सुखदायक एवं निश्रेयसकारी मोक्षमार्ग का प्रवत्तन करें । जय हो, जय हो, जय हो।" लोकान्तिक देव भगवान् को नमस्कार कर के स्वस्थान लौट गए। ___ महाभिनिष्क्रमण महोत्सव अब नन्द वर्धनजी अपने प्रिय बन्धु को रुकने का आग्रह नहीं कर सकते थे। प्रिय बन्धु के वियोग का समय ज्यों-ज्यों निकट आ रहा था, त्यों-न्यों श्रीनन्दीवर्धनजी की उदासी बढ़ती जा रही थी। उन्होंने विवश हो कर सेवकजनों को महाभिनिष्क्रमण महोत्सव करने की आज्ञा प्रदान की। भगवान् के निष्क्रमण का अभिप्राय जान कर भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक जाति के देव अपनी ऋद्धि सहित क्षत्रियकुंड आये। प्रथम स्वर्ग के स्वामी शकेन्द्र ने वैक्रिय शक्ति से एक विशाल स्वर्ण-मणि एवं रत्न जड़ित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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