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________________ अश्वग्रीव का भयंकर युद्ध और मृत्यु १२१ म्यववकककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककब "रे दुष्ट ! तेरे दूत को सभ्यता का पाठ पढ़ाने वाला, सिंह का मारक, स्वयंप्रभा का पति और तुझे स्वामी नहीं मानने वाला तथा अब तक तेरी उपेक्षा करने वाला मैं ही हूँ। और अपने बल से विशाल सेना को नष्ट करने वाले ये हैं मेरे ज्येष्ठ बन्धु अचलदेव । इनके सामने ठहर सके, ऐसा मनुष्य संसार भर में नहीं है । फिर तू है ही किस गिनती में ? हे महाबाहु ! यदि तेरी इच्छा हो, तो सेना का विनाश रोक कर अपन दोनों ही युद्ध कर लें। तू इस युद्ध-क्षेत्र में मेरा अतिथि है । अपन दोनों का द्वंद युद्ध हो और दोनों ओर की सेना मात्र दर्शक के रूप में देखा करे ।" त्रिपृष्ठकुमार का प्रस्ताव अश्वग्रीव ने स्वीकार कर लिया और दोनों ओर की सेनाओं में सन्देश प्रसारित कर के सैनिकों का युद्ध रोक दिया गया। अब दोनों महावीरों का परस्पर युद्ध होने लगा । अश्वग्रोव ने धनुष पर बाण चढ़ाया और उसे झकृत किया । त्रिपृष्ठकुमार ने भी अपना शारंग धनुष उठाया और उसकी पणच बजा कर वज्र के समान लगने वाला और शत्रुपक्ष के हृदय को दहलाने वाला गम्भीर घोष किया। बाण वर्षा होने लगी । अश्वग्रीव ने बाण-वर्षा करते हुए एक तीव्र प्रभाव वाला बाण त्रिपृष्ठ पर छोड़ा। त्रिपृष्ठ सावधान ही थे। उन्होंने तत्काल ही बाणछेदक अस्त्र छोड़ कर उसके बाण को बीच में ही काट दिया और तत्काल चतुराई से ऐसा बाण मारा कि जिससे अश्वग्रीत का धनुष ही टूट गया। इसके बाद अश्वग्रीव ने नया धनुष ग्रहण किया। त्रिपृष्ट ने उसे भी काट दिया। एक बाण के प्रहार से अश्वग्रीव के रथ की ध्वजा गिरा दी और उसके बाद उसका रथ नष्ट कर दिया। जब अश्वग्रीव का रथ टूट गया, तो वह दूसरे रथ में बैठा और मेघ-वृष्टि के समान बाण-वर्षा करता हुआ आगे बढ़ा। उसने इतने जोर से बाण-वर्षा की कि जिससे त्रिपठ और उनका रथ, सभी ढ़क गये । कुछ भी दिखाई नहीं देता था। किंतु जिस प्रकार सूर्य बादलों का भेदन कर के आगे आ जाता है, उसी प्रकार त्रिपृष्ठ ने अपनी बाण वर्षा से समस्त आवरण हटा कर छिन्न-भिन्न कर दिये। अपनी प्रवल बाण-वर्षा को व्यर्थ जाती देख कर अश्वग्रीव के क्रोध में भयंकर वृद्धि हुई। उसने मृत्यु की जननी के समान एक प्रचण्ड शक्ति ग्रहण की और मस्तक पर घुमाते हुए अपना सम्पूर्ण बल लगा कर त्रिपृष्ठ पर फेंकी। शक्ति को अपनी ओर आती हुई देख कर त्रिपृष्ठ ने रथ में से यमराज के दण्ड समान कौमुदी गदा उठाई और निकट आई शक्ति पर इतने जोर से प्रहार किया कि जिससे अग्नि की चिनगारियों के सैकड़ों उल्कापात छोड़ती हुई चूर-चूर हो कर दूर जा गिरी । शक्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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