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________________ (१२) ل ३४६ ل ل ३३० ന ന क्रमांक विषय पृष्ठ क्रमांक विषय २१९ श्रमणों की घात और भगवान् को | २४० दरिद्र संडुक दर्दुर देव हुआ ३४३ पीड़ा २४१ छींक का रहस्य ३४६ २२० भगवान् पर किया हुआ आक्रमण २४२ मैं नरकगामी हूँ ? मेरी नरक कैसे टले? खुद को भारी पड़ा २४३ श्रद्धा की परीक्षा २२१ गोशालक धर्म-चर्चा में निरुत्तर हुआ ३ २४४ श्रेणिक निष्फल रहा xx तुम २२२ गोशालक ने शिष्य-सम्पदा भी गँवाई ३२६ तीर्थकर होंगे २४५ नन्द-मणिकार श्रेष्ठि का पतन और २२३ जन चर्चा ३३० मेंढ़क का उत्थान २२४ गोशालक-भक्त अयंषुल २४६ क्या मैं छद्मस्थ ही रहूँगा xx गौतम २२५ प्रतिष्ठा की लालसा ३३१ स्वामी की चिन्ता २२६ भावों में परिवर्तन और सम्यक्त्व लाभ ३३२ २४७ सुलसा सती की परीक्षा ३५३ २२७ मताग्रह से आदेश का दांभिक २४८ दशार्णभद्र चरित्र ३५५ पालन हुआ ३३२ २४९ शालिभद्र चरित्र ३५७ २२८ गोशालक की गति और विनाश २५० पत्नियों का व्यंग और धन्य की दीक्षा ३६१ २२९ भस्म मुनिवरों की गति ३३४ २५१ माता ने पुत्र और जामाता को २३० भगवान् का रोग और लोकापवाद नहीं पहचाना ३६२ २३१ सिंह अनगार को शोक ३३५ २५२ रोहणिया चोर ३६३ २३२ सिंह अनगार को सान्त्वना २५३ महामन्त्री की चाल व्यर्थ हुई ३६६ २३३ रेवती को आश्चर्य २५४ रोहिण साधु हो गया ३६८ २३४ गोशालक का भव-भ्रमण २५५ चण्डप्रद्योत घेरा उठा कर भागा ३६६ २३५ हालिक की प्रव्रज्या और पलायन ३३७ २५६ वेश्या अभयकुमार को ले गई ३७० २३६ प्रसन्नचन्द्र राजर्षि चरित्र ३३६ २५७ अभयकुमार का बुद्धि वैभव २३७ छोटा-सा निमित्त भी पतन कर २५८ वत्सराज उदयन बन्दी बना सकता है ३४० । २५९ उदयन और वासवदत्ता का पलायन ३७६ २३८ वीर-शासन का भविष्य में होने वाला २६० अभयकुमार की मांग और मुक्ति । ३७८ अंतिम केवली __ ३४१ | २६१ अभयकुमार की प्रतिज्ञा ३७८ २३९ देव द्वारा उत्पन्न की गई समस्या का |२६२ संयम सहज और सस्ता नहीं है। ३७६ समाधान ३४२ | २६३ अभयकुमार की निर्लिप्तता ३८१ ३३३ m m m mr ३३६ ३७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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