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क्रमांक विषय पृष्ठ क्रमांक विषय
पृष्ठ ६७ हनुमान का विभीषण को सन्देश १६० । ११९ रामभद्रजी द्वारा आश्वासन १८५ ६८ सोता को सन्देश
१६० | १२० इन्द्रजीत आदि का पूर्व-भव ६६ हनुमान का उद्यान में उपद्रव करना १६३ १२१ सीता-मिलन १०० हनुमान द्वारा रावण की अपभ्राजना १६४ | १२२ विभीषण का राज्याभिषेक १८७ १०१ राम-लक्ष्मण की रावण पर चढ़ाई समुद्र । १२३ माता को चिन्ता और नारदजी का __ और सेतु से लड़ाई १६५ सन्देश लाना
१८८ १०२ विभीषण की रावण और इन्द्रजीत से १२४ भ्र तृ-मिलन और अयोध्या प्रवेश १८९ झड़प
१२५ भरतजी की विरक्ति १०३ विभीषण राम के पक्ष में आया १६८ १२६ भरत कैकयी का पूर्वभव और मुक्ति १९१ १०४ युद्धारंभ xx नल-नील आदि का
१२७ शत्रुघ्न को मथुरा का राज्य मिला १९५ पराक्रम १६८ १२८ शत्रुघ्न का पूर्व भव
१६७ १०५ माली वज्रोदर जम्बूमाली आदि का १२९ सात ऋषियों का वृतान्त
१९९ विनाश
१७० १३० लक्ष्मण का मनोरमा से लग्न २०० १०६ कुंभकर्ण का मूच्छित होना
१७१ । १३१ सगर्भा सीता के प्रति सौतिया-डाह एवं १०७ इन्द्रजीत और मेघवाहन का अतुल
षडयन्त्र
२०१ पराक्रम
१३२ गुप्तचरों ने सीता की कलंक-कथा १०८ कुंभकर्ण इन्द्रजीत आदि बन्दी हुए १७३ सुनाई
२०४ १०९ लक्ष्मणजी मूच्छित
१३३ कुल की प्रतिष्ठा ने सत्य को कुचला २०५ ११० रामभद्रजी हताश
१३४ सीता को वनवास
२०६ ११, विशल्या के स्नानोदक का प्रभाव
१३५ सीता का पति को सन्देश
२०८ ११२ रावण की चिन्ता
| १३६ सीता वज्रजंघ नरेश के भवन में २०८ ११३ रावण के सन्धि-सन्देश को राम ने १३७ रामभद्रजी की विरह-वेदना और सीता ठुकराया
१८०
की खोज ११४ विजय के लिये रावण की विद्या साधना १८१ १३८ सीता के युगल पुत्रों का जन्म २११ ५१५ काम के स्थान पर अहंकार आया १८२ | १३९ लव-कुश की प्रथम विजय
२१२ १५६ अपशकुन और पुनः युद्ध
१८३ / १४० लवणांकुश का राम-लक्ष्मण से युद्ध २१३ ५१७ विभीषण का अन्तिम निवेदन १८४ | १४१ सतीत्व-परक्षा और प्रव्रज्या ११८ रावण का मरण
१८४ । १४२ प्रिपा-वियोग से रामभद्र जी मूच्छित २२४
१७१
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१८०
२१०
२१९
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