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________________ - तीर्थंकर चरित्र ६६२ कककककककककककककककककककककककककककककककायककककककककको - “महाराज ! यदि आपके मरे हुए बन्धु पुनः जीवित हो सकते हैं, तो मेरी गाय घास क्यों नहीं खा सकती है ?" . देव ने इस प्रकार के बोर भी प्रयत्न किये, तब बलदेवजी के मन में विचार हुआ-"क्या ये सब लोग मूर्ख हैं. या में स्वयं भ्रम में हूँ ? क्या सचमुच कृष्ण मुझे छोड़ कर चले गए और यह उनका निर्जीव शरीर ही है ?" अवधिज्ञान से बलभद्रजी को चिन्तन करते देख कर देव प्रसन्न हुआ । उपयुक्त अवसर आ गया था । वह अपने देव रूप से प्रकट हो कर बोला:-- “महाराज ! में आपका इन्धु एवं सारथि सिद्धार्थ हूँ। आपने मुझ-से वचन लेने के बाद दीक्षा की अनुज्ञा दी थी १ में भगवान् अरिष्टनेमि के पास संयम पाल कर देव हुआ बोर द्वारिका-दाह तथा आपकी यह दशा जान कर यहाँ माया हूँ। बाप मोह त्याग कर विचार कीजिये । भगवान् नेमिनाथजी ने क्या कहा था? द्वारिका-दाह और जराकुमार के निमित्त से कृष्ण के देहावसान की भविष्यवाणो भूल गये आप? कृष्ण ने बराकुमार को अपना कौस्तुभमगि दे कर, पर इवों के पास मजा और बाद में देह त्याग दिया। अब आप ब्रम छोड़ कर सावधान बने ।" "बन्धु सिद्धार्थ ! तुम मेरे हितषी हो । तुमने मुझे मोह-नींद से जगाया। कहो, अब मुझे क्या करना चाहिए ?* "महाराज! बन्धु के शव का संस्कार कर के भगवान् अरिष्टनेमि बी के समीप निनन्थ-प्रव्रज्या स्वीकार कर, जन्म-मरण की जड़ काटने का अन्तिम पुरुषार्थ कोजियेशुकमात्र यही आपके लिये करणीय है।" बलदेवजी ने समद-सिन्ध संगम के स्थान पर विरक्त भाव से बन्धु के शव का अग्निसंस्कार किया और मोख-साधना की भावना करने लये । बलदेवजी की भावना जान कर भगवान् अरिष्टनेमियो ने एक चारण मुनि को बलदेवजी के निकट भेजा । बलदेवजी ने मुनिराज से प्रव्रज्या स्वीकार की। कुछ काल गुरु के साथ रह कर बाद में एकाकी साधना करने लगे। सिद्धार्थ देव उनका रक्षक बन कर रहा । बलदेवजी,सुथार और मृग का स्वर्गवास तपस्वी मुनिराज श्रीवल देवजी, मासम्खपण के पारणे के लिए नगर में मये । वे पनघट की ओर हो कर जा रहे थे। पनिहारियों में एक स्त्री अपने बालक को ले कर आई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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