SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 670
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५७ 1 अनुपम देवपुरुष कौन है ?" किसी ने उन्हें पहिचान लिया और बोला--" अरे ! ये तो बलदेवजी हैं। द्वारिका दाह से निकल कर इधर आये हैं ।" यह बात राजा तक गई । युद्ध के विनाश से बचा हुआ धृतराष्ट्र का एकमात्र पुत्र अच्छदंत वहां का राजा था। वह कृष्णबलदेव पर उम्र वैर रखता था । वह सेना ले कर बलदेवजी को मारने निकला । कककककककककक भ. ई के बाण से श्रीकृष्ण का अवसान ရားများများရောင် बलदेवजी ने अपनी अंगुली में से बहुमूल्य अंगुठी निकाल कर हलवाई को दी और विविध प्रकार का भोजन लिया। भोजन ले कर वे नगर के बाहर जा रहे थे कि सैनिकों ने नगर के द्वार बन्द कर दिये और उन पर धावा कर दिया । बलदेवजी ने भोजन सामग्री एक ओर रख दी और हाथी बाँधने का थंभा उखाड़ कर और सिंहनाद करते हुए शत्रुसेना का संहार करने लगे सिंहनाद सुन कर कृष्ण भी तत्काल दौड़े आए और पाद - प्रहार से नगर का बन्द द्वार तोड़ कर नगर में घुसे और द्वार की अर्गला उठा कर शत्रुओं का संहार करने लगे । थोड़ी देर में अच्छदंत राजा, हार कर बन्दी बन गया । श्रीकृष्ण ने कहा - " मूर्ख ! वैभव नष्ट हो गया, तो क्या हमारा बल भी मारा गया ? क्या समझ कर तू ने घृष्टता की ? हम इस बार तुझे छोड़ते है । जा और न्याय-नीति से अपना राज्य चला ।" दोनों बन्धु नगर के बाहर निकले और भोजन करके आगे चलने लगे । भाई के बाण से श्रीकृष्ण का अवसान हस्तिकल्प से चलते हुए दोनों बन्धु कौशांबी वन में आये । शोक, थाक, श्रम और विपत्ति के कारण क्लांत बने हुए श्रीकृष्ण को तीव्र प्यास लगी । उन्होंने बलदेवजी से कहा- 'मुझे प्यास लगी है और असह्य हो रही है । जी घबरा रहा है, तालु सूख रहा है और आगे चलने में असमर्थ हो रहा हूँ ।" ८. LL 'तुम इस वृक्ष की छाया में बैठो । में पानी लेने जाता हूँ, शीघ्र ही लौटूंगा' कह कर श्रीबलदेवजी चल दिये। उधर श्रीकृष्ण वृक्ष तले लेट गए और अपने एक खड़े पाँव के घुटने पर दूसरा पाँव रख दिया। उन्होंने पिताम्बर ओढ़ा हुआ था । भवितव्यता वश 1. जराकुमार मृगया के उद्देश्य से उसी वन में भटक रहे थे । उन्होंने दूर से पिताम्बर ओढ़े श्रीकृष्ण को देखा, तो मृग होने का भ्रम हो गया । ऊपर उठे हुए पाँव को उन्होंने मृग का मुँह समझा और पिताम्बर के रंग ने मृग होने का भ्रम उत्पन्न किया। उसने लक्ष्य बांध कर बाण ठोक-मारा । वह बाण श्रीकृष्ण के पाँव में घुस गया । बाण लगते ही वे उठ गए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy