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तीर्थङ्कर चरित्र
पककककककककककककमान्सककककककककककककककककककककककक गन्मयन्यकककककर
उन मुनियों के जाने के बाद थोड़ी ही देर में, उन्हीं में का दूसरा संघाड़ा देवकी देवी के भवन में वाया। देवी के मन में उन्हें देख कर सन्देह हुआ-'कहीं ये मार्ग भूल कर तो पुनः नहीं बा मए-यहाँ ?' वह यह जान ही नहीं सकी थी कि ये संत दूसरे हैं । छहों भ्राता वर्ष,बाकृति, डिलडोल, वय और रूप में समान तथा लोकोत्तम थे। वह तत्काल उठी । बागे बढ़ कर सम्मान दिया और वन्दन-नमस्कार कर भक्तिपूर्वक भोजनशाला में ले गई बौर उसी प्रकार सिंहकेसरी मोदक बहरा कर विसजित किये। उनके जाने के बाद मुनियों को तीसरी बोड़ी भी वहीं पहुंच गई। उन्हें देख कर देवकी रानी विशेष अंकित हुई, किन्तु चेहरे पर सन्देह की रेखाएँ नहीं उभरने दी और उसी बादर सत्कार के साथ सिंहकेसरी मोदक बहराये । इसके शद सन्देह निवारण के लिए देवकी ने पूछा;
"महात्मन् ! क्या कृष्ण-वासुदेव की इस विशाल एवं समृद्ध नगरी के लोगों में सुपात्रदान की रुचि समाप्त हो गई, शा अन्न दुर्लभ हो गया, जिससे संत-महात्माओं को मिक्षा नहीं मिली बौर बार-बार एक ही घर से भिक्षा लेनी पड़ी।
संत समझ गके कि संफोमवश्चात् बाज तीनों संघाड़े यहीं या गए हैं । उन्होंने कहा
"नहीं, देवी ! हम पहले नहीं जाये। पहले बाने वाले दूसरे हैं और हम दूसरे हैं। बात यह है कि हम महिलपुर के ना-प्रेष्ठि के पुत्र और सुलसा माता के जात्मज छह भाई हैं । छहों की आकृति बौर वर्णादि समान हैं। हम छहों संसार और भोग-विलास छोड़ कर भगवान् नेमिनाथ प्रभु के पास दीक्षित हुए और निरन्तर बेले बेले तप करने लये। आज हमारे पारणे का दिन है। भयवान् की आज्ञा ले कर हम छहों मुनि, तीन संघाड़ों में विभक्त हो कर माधुकरी के लिए निकले । संबोषवशात् हम तीनों संघाड़े कमनः यहाँ आ गए हैं और हमारी समान आकृति ही तुम्हारे एक मानने और पुनः पुनः प्रवेश के भ्रम का कारण बनी है।"
संत लौट गए । परन्तु देवकी के मन में एक भूली स्मृति जम गई + । वह मोचन लगी;
"अतिमुक्तकुमार श्रमण की वह भविष्यवाणी अरूक हुई। उन्होंने कहा था'देवकी! तुम माठ पुत्रों की माता बनोगी । तुम्हारे वे पुत्र इतने उत्कृष्ट रूप और समान
+ उन्हीं छहों सन्तों के, देवकी देवी के यहाँ एक ही दिन पिकाई अपने में संशन है देवकी के उपादान का निमित्त बना हो कि जिससे देवकी के मन में आठवें पुत्र की लालसा उत्पन्नई और गजसुकुमालकुमार का जन्म हुआ।
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