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________________ पाण्डवों की दिग्विजय और दुर्योधन की बैरवृद्धि ४६७ - नककककककककरायवयायकककककककककककककककककककककककककककककककर बायक भाई ही मान रहे थे बोर उसका भला चाहते थे। परन्तु दुर्योधन उनसे डाह रखता था । और उनका विनाश चाहता था। वह इसी चिंता में रहता था। उसके सोचने-विचारने का प्रमुख विषय पाण्डव ही थे। पाण्डवों की दिग्विजय और दुर्योधन की वैरवृद्धि पाण्डबों का प्रताप वृद्धिंगत था । भीम आदि बन्धुओं के आग्रह से युधिष्ठिर नरेश ने दिग्विजय करने का अभियान प्रारम्भ किया। पूर्व दिशा में भीमसेन सेना ले कर गया और अंग, बंग, कलिंग, कामरू देश आदि पर विजय प्राप्त कर महाराजा युधिष्ठिरजी की आज्ञा के आधीन किये । दक्षिण में अर्जुन ने द्रविड़, महाराष्ट्र, कर्णाटक, लाट, तैलंग आदि से अधिनता स्वीकार कराई । पश्चिम में सौराष्ट्र आदि पर नकुल ने सत्ता जमाई और उत्तर में कम्बोज, नेपाल आदि पर सहदेव के पराक्रम से विजयश्री प्राप्त हुई । दिग्विजय प्राप्त कर के लौटे हुए वीरों का भव्य स्वागत किया गया । हस्तिनापुर में विजयोत्सव का आयोजन हुआ। सभी राजाओं, सामन्तों और स्वजनों को निमन्त्रित किया गया । राज्य-भवन ही नहीं, सारा नगर और राज्य के अन्य जनपदों, नगरों और गांवों में भी महोत्सव मनाया जाने लगा । हस्तिनापुर में राजाओं, रानियों, राजकुमारों आदि का समूह एकत्रित हो गया । सभी अपने-अपने देश की वेशभूषा में सुसज्जित थे। अपने-अपने माजसज्जा, अलंकार, सम्मान एवं राजचिन्हों से सुशोभित हो रहे थे । दुर्योधन भी अपने परिवार एवं परिकर के साथ आया हुआ था। महोत्सब प्रारम्भ होते ही हर्षोल्लास में एक विशेष वृद्धि हुई । अर्जुन की रानी सुभद्रा ने पुत्र को जन्म दिया। अब दोनों उत्सव साथ ही मनाये जाने लगे । महोत्सव के दिन बालक का नाम 'अभिमन्यु' प्रसिद्ध किया गया। सारे राज्य से नगरों गांवों और वहाँ के वर्ग-विशेष के प्रतिनिधि भी महोत्सव में महाराजाधिराज युधिष्ठिरजी का अभिनन्दन करने आये थे। हस्तिनापुर, इन्द्रपुरी के समान और चारों बन्धु चार लोकपाल के समान लग रहे थे। राजभवन के कक्ष की भित्तियां विविध प्रकार के जड़े हुए रत्नों और मणिमुक्ताओं से सुशोभित हो रही थी। छतें विविध मणियों से खचित थौं, मानों आकाश में विविध प्रकार के नक्षत्र चमक रहे हों। आँगन एक प्रकार के रत्नों से जड़े हुए थे। कोई लाल सरोवर जैसा लगता, कोई नीला सरो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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