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तीर्थकर चरित्र
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राजा बन गया । शूर्पणखा के हरण के समय रावण लंका में नहीं था । जब रावण आया और उसे खर द्वारा शूर्पणखा के हरण के समाचार मिले, तो वह रोष में भर गया और खर का निग्रह करने के लिए पाताल-लंका जाने लगा। किंतु महारानी मन्दोदरी ने रोका। वह बोली ;--
“आर्यपुत्र ! जरा विचार कीजिए। आपकी बहिन का बलपूर्वक हरण नहीं हुआ। वह स्वयं खर पर आसक्त हुई । उसकी अनुमति से ही खर उसे ले गया है । आपको भी अपनी बहिन किसी को देनी ही थी। जब बहिन ने स्वयं अपना वर चुन लिया, तो आपको रोष करने की बात ही क्या रही ? वैसे खर भी कुलवान् विद्याधर का पुत्र है । अतएव बहिन की इच्छानुसार पति मिलने की प्रसन्नता होनी चाहिए । अब आपका कर्तव्य है है कि मन्त्रीगण को भेज कर दोनों के लग्न की तैयारी करें। खर आपका विश्वसनीय सुभट होगा । अतएव आपको तो प्रसन्न ही होना चाहिए।"
महारानी मन्दोदरी की बात का कुंभकर्ण और विभीषण ने भी समर्थन किया, तब रावण ने मय और मारीच नाम के दो राक्षसों को भेज कर शूर्पणखा का खर के साथ विवाह करवा दिया। रावण की आज्ञा में रह कर, खर पाताललंका का राज करता हुआ शूर्पणखा के साथ भोगासक्त हो गया।
खर द्वारा निकाले हए चन्द्रोदर का आयष्य अल्प ही था। वह थोडे ही दिनों में मर गया। उस समय उसकी रानी अनुराधा गर्भवती थी। वह भाग कर वन में चली गई । वन में उसके पुत्र का जन्म हुआ । उसका नाम 'विराध' रखा । युवावस्था में वह सभी प्रकार की कलाओं में पारंगत हुआ। वह नीति आदि गुणों से युक्त था। वह पृथ्वी पर भ्रमण करने लगा।
बालि के साथ रावण का युद्ध
रावण अपनी राजसभा में बैठा था। वार्तालाप के समय किसी सामन्त ने किष्किन्धा नरेश बालि के बल, पराक्रम और अपराजेय शक्ति का वर्णन किया, जिसे सुन कर रावण आवेशित हो गया। उसने अपने विश्वस्त दूत को बुलाया और बालि के लिए सन्देश ले कर भेजा। दूत किष्किन्धा में बालि नरेश की सेवा में उपस्थित हो कर विनय पूर्वक बोला;--
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