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________________ ४३७ teespeedeseserveshestestendesesesideshdeseseseseservestoresedesesedesbestdedesesesedesesedesedesterjestdesesesesesedesejedespite कुंतो के पुत्र-जन्म और त्याग " मैं वैताढय पर्वत के हेमपुर नगर का राजा हूँ। मेरा नाम विशालाक्ष है । मैने अनेक विद्याधर राजाओं को अपने अधीन किये। एकबार में देशाटन करने निकला । मेरे शत्रु राजा, अवसर की ताक में थे । जव में यहाँ पहुँचा, तो अचानक हमला कर के मुझे पकड़ लिया और इस वृक्ष के साथ मेरे शरीर में कीलें ठोक कर चले गये । मैं उग्र वेदना से तड़पता हुआ मूच्छित हो गया । मुझे जीने की आशा विलकुल नहीं थी। मैं मृत्यु की कामना कर रहा था, परन्तु सद्भाग्य से आपका पुण्य-पदार्पण हुआ और मैं बचा लिया गया । आपने मुझे जीवन-दान दिया है। आप मेरे प्राणों के स्वामी हैं । कृपया मेरी यह अंगूठी लीजिये और इसे पानी में धो कर, वह पानी मेरे शरीर पर छिड़कने की कृपा कीजिये ।" मैने वैसा किया, जिससे उसके शरीर के घाव भर गए और वह स्वस्थ हो गया। इसके बाद उसने मेरी उदासी का कारण पूछा । मैने अपनी व्यथा कह सुनाई । उसने अपनी अंगूठी मुझे देते हुए कहा ;-- “आप यह अंगूठी लीजिये। इससे आपकी मनोकामना पूर्ण होगी । यह मुद्रिका मुझे वंश-परम्परा से मिली है। इसके प्रभाव से आपका इच्छित कार्य सिद्ध होगा और आप अदृट्य भी रह सकेंगे। वशीकरण, विषापहार और शरीर पर के घावों को भर कर स्वस्थ करने का गुण भी इसमें है । इससे शरीर में इतनी लघुता आ जाती है कि जिससे आकाश में गमन भी सहज हो जाता है । यह मुद्रिका आप लीजिये और साहस के साथ यत्न कीजिये । आप सफल मनोरथ होंगे।" ___ " मैं अंगूठी लेकर इस ओर आया और वह विद्याधर अपने स्थान पर गया।" पाण्डु राजा, कुन्ती और उसकी सखी चतुरा, थोड़ी देर वहीं बातें करते रहे । इसके बाद दोनों सखियाँ अन्तःपुर में आई और पाण्डु भी अदृश्य रूप से कुन्ती के शयनकक्ष में पहुंच गया। रातभर वह कुन्ती के साथ रहा और प्रातःकाल चल कर अपनी राजधानी में आ पहुंचा। कुंती के पुत्र-जन्म और त्याग कुछ कालोपरान्त कुन्ती की शारीरिक दशा बिगड़ी । उसका जी मिचलाने लगा, वमन होने लगे । गर्भ की आशंका हुई । अब बात छुपी रहना असंभव हो गया। कुन्ती की दशा देख कर उसकी माता सुभद्रा चिन्तित हुई । अन्त में चतुरा द्वारा पाण्डु के समा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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