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पाण्डु का कुन्ती के साथ गन्धर्वलग्न desesevedodoordabetestostostest-dedestroiesbodoofedo dededede dedesbacoste dested-title-itionsoosebestdesisedesesesedesevedeosederde
पहुँचा हूँ। आपकी और पाण्डु नरेश की कीर्ति सुन कर में यहां टिक गया। आज सुयोग से आपके दर्शन हुए । मुझे पाण्डु नरेश. राजकुमारी के लिए पूर्ण रूप से उपयुक्त लगे हैं । मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप यह सम्बन्ध स्वीकार कर लीजिए । राजकुमारी कुन्ती के 'माद्री' नाम की एक छोटी बहिन भी है । उस पर चेदी नरेश दमघोषजी मुग्ध हैं । किन्तु उसका लग्न बडी बहिन कन्ती के लग्न के बाद ही करना है। मेरी प्रार्थना स्वीकार कर कृतार्थ कीजिये।"
भीष्मदेव को यह सम्बन्ध योग्य लगा। उन्होंने स्वीकृति देने के साथ ही अपने एक विश्वस्त अनुचर को मथुरा भेजा । अनुचर ने अन्धकवृष्णि राजा के सामने भीष्मदेव का अभिप्राय व्यक्त किया । अन्धकवृष्णि ने उस समय उसको कोई उत्तर नहीं दिया। किंतु दूसरे दिन राजा ने चित्रकार के साथ दूत को कहला भेजा कि--'पाण्डु राजा रोगी हैं, इसलिए यह सम्बन्ध स्वीकार करने योग्य नहीं है ।' अनुचर हस्तिनापुर लोट आया।
कुन्ती का चित्र दन कर पाण्डु भी उस पर मुग्ध हो गया। उसके हृदयपट्ट पर कुन्ती ने आसन जमा लिया । पाण्ड इतना विमोहित हो गया कि वह उचित अनुचित का विचार किये बिना हो गप्त रूप से मधरा पहँचा और कुन्ती से साक्षात्कार करने का प्रयत्न करने लगा। उधर कुन्ती भी चित्रकार से पाण्डु की प्रशंसा सुन कर उसी पर मुग्ध हो गई और मन ही मन पाण्डु को वरण कर लिया । परन्तु पिता का उत्तर जान कर वह हताश हो गई । वह चिन्ता सागर में गोते लगाने लगी। खान-पान और हास्य-विनोद छूट गए। उसकी उदासी, उसकी प्रिय सखी चतुरा से छुपी नहीं रह सकी । सखी के आगे मन का भेद खोलते हुए कुन्ती ने कहा- " सखी ! यदि मेरा मनोरथ सफल नहीं हुआ, तो मुझे अपने जीवन का अन्त करना पड़ेगा।" सखी उसे सान्त्वना देती रही, परन्तु उसे सन्तोष नहीं हुआ। एकबार उद्विग्नता बढ़ने पर वह सखी के साथ पुष्प-वाटिका में चली गई और बाटिका से आगे बढ़ कर उद्यान में पहुँच गई । कुन्ती को एक वृक्ष के नीचे बिठा कर उसका सखी कुछ पुष्प-फलादि लेने के लिए चली गई। उस समय कुन्ती ने सोचा-- 'आत्म-घात का ऐसा अवसर फिर मिलना कठिन होगा।' उसने अपनी साड़ी को वृक्ष की डाली से बाँध कर फांसी का फन्दा बनाया और गले में डाल कर झूल गई । किन्तु उसी समय एक युवक ने खड्ग के वार से उसका फन्दा काट कर कुन्ती को बाहों में थाम लिया। कुन्ती युवक के बाहुपाश में झूल गई । वह युवक पाण्डु नरेश ही था। उसने तलवार का प्रहार करते हुए कहा--"मुग्धे ! इतना दुःसाहस क्यों कर रही हो ?" कुन्ती धक से रह गई। उसने सोचा - 'मेरी दुःख-मुक्ति में यह विघ्न वहाँ से आ गया ? यह पुरुष कौन ?'
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