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________________ धृतराष्ट्र पाण्डु और विदुर का जन्म ४३३ saslashbacassetteseshacha sheshachchcha chachchi fasbf chashastasacha s विचित्रवीर्य का ज्येष्ठ भ्राता हूँ। आपने इस समारोह में हमारे महाराजाधिराज को आमन्त्रण नहीं दे कर गम्भीर भूल की । इसी से मुझे आपके आयोजन में विघ्न उत्पन्न कर के यह कार्य करना पड़ा । मैंने जो कुछ किया, वह आपको अत्याचार लग सकता है, किन्तु इसे वीरोचित - क्षत्रियोचित तो आप को भी मानना पड़ेगा । राजा, स्वामी या पति बलवान ही हो सकता है । बलवान इन्हें शक्ति से प्राप्त करते एवं रक्षण करते हैं । मैने भी यही किया है । आप क्षोभ एवं विषाद को छोड़ कर प्रसन्न होइए और अपनी पुत्रियों को प्रसन्नतापूर्वक प्रदान कीजिए। मैं आप से आत्मीय मधुर सम्बन्ध की आशा रखता हूँ ।" गांगेयदेव का परामर्श काशीराज ने स्वीकार किया और अपनी तीनों पुत्रियों को अत्यन्त आदरपूर्वक और विपुल दहेज के साथ गांगेयदेव को अर्पित की। तीनों राजकुमारियाँ हर्षित थी । हस्तिनापुर आने के बाद तीनों का लग्न, राजा विचित्रवीर्य के साथ हो गया । विचित्रवीर्य अप्सरा जैसी तीन रानियाँ एक साथ प्राप्त होने से प्रसन्न था । वह काम भोग में निमग्न रहने लगा और राज-काज भीष्मदेव चलाते रहे । धृतराष्ट्र पाण्डु और विदुर का जन्म विचित्रवीर्य के रानी अम्बिका की कुक्षी से पुत्र उत्पन्न हुआ। उसका नाम 'धृतराष्ट्र' रखा गया । धृतराष्ट्र जन्मान्ध था । कालान्तर में अम्बालिका के भी पुत्र हुआ, जिसका नाम 'पाण्डु' रखा और उसके बाद अम्बा के भी पुत्र का जन्म हुआ, उसका नाम 'विदुर' रखा गया । विचित्रवीर्य कामान्ध था । वह राजकाज और अन्य लोक व्यवहार भूल कर कामभोग में ही लुब्ध रहने लगा । इस भोगासक्ति से उसकी शरीर शक्ति क्षीण होने लगी । उसकी दुर्बलता देख कर भीष्म को चिन्ता हुई। भीष्म ने माता सत्यवती से विचित्रवीर्य की विषय- लुब्धता छुड़ाने का यत्न करने के लिए कहा। सत्यवती भी चिन्तित थी । उसने और भीष्मदेव ने विचित्रवीर्य को समझाया और उसका प्रभाव भी हुआ, किन्तु अस्थायी । कुछ दिन वह बरबस भोग विमुख रहा । किन्तु शक्ति संचय होते ही वह पुनः भोगासक्त हो गया । प्राप्त शक्ति क्षीण होने लगी । उसे क्षय रोग हो गया और क्रमशः क्षीण होतेहोते जीवन ही क्षय हो गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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