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४३० Swesedestoredesisesesedesesksfedeodesdedesesesesesesesesesesedesiesesejesesestedledesterdesdeskedesesesesedesh desesedlesedadesidesdedesbita
तीर्थङ्कर चरित्र
सत्यवती को अन्तःपुर में पहुँचा दिया । महाराजा शान्तनु, मन्त्रीगण और प्रजा ने गांगेय की भीष्म-प्रतिज्ञा सुन कर आश्चर्य माना। शुभ मुहूर्त में शान्तनु और सत्यवती का लग्न हुआ और वे भोग में आसक्त हो कर जीवन व्यतीत करने लगे।
शान्तनु का देहावसान
महाराजा शान्तनु सत्यवती के साथ कामभोग में आसक्त हो कर जीवन व्यतीत करने लगे और गांगेयकुमार धर्म-चिन्तन और राज्य-व्यवस्था में समय बिताने लगे। महाराजा मोर सत्यवती का भीष्म पर अत्यधिक प्रेम था । कालान्तर में सत्यवती गर्भवती हुई । उसके पुत्र उत्पन्न हुआ। वह रूप-कांति में उत्तम और आकर्षक था। उसका नाम 'चित्रांगद' रखा । भीष्म को लघुभ्राता पा कर बड़ी प्रसन्नता हुई । उसका भ्रातृ-प्रेम उमड़ा। वह बालक को प्रेमपूर्वक छाती से लगा कर हर्षित हुआ । कालान्तर में एक पुत्र और हुआ, उसका नाम 'विचित्रवीर्य' रखा । वह भी आकर्षक और रूपवान् था। दोनों बन्धों की शिक्षा पर भीष्म ने विशेष ध्यान दिया। वे सभी कलाओं में प्रवीण हो कर युवावस्था को प्राप्त हुए। गांगेय, चित्रांगद और विचित्रवीर्य का पारस्परिक स्नेह और सद्भाव देख कर राजा और रानी, सन्तुष्ट थे : गजा मान्तनु वृद्धावस्था प्राप्त कर चुके थे। उनके मन में अब संसार से विरक्ति बढ़ रही थी। वे अपने पिछले जीवन को धिक्कार रहे थे। अपने शिकारी-जीवन में पशुओं की हुई हिंसा और विषय-लोलुपता का पश्चाताप कर रहे थे। उनकी इच्छा अब त्यागमय श्रमण-साधना स्वीकार करने की हो रही थी। वे यही भावना रखते थे। उसी समय उन्हें एक भयंकर व्याधि उत्पन्न हुई और थोड़े हा समय में उनका देहायमान हो गया।
चित्रांगद का राज्याभिषेक और मृत्यू
शान्तनु के अवसान के बाद गांगेय ने अपने छोटे भाई चित्रांगद का राज्याभिषेक करवाया और स्वयं राज्य और प्रजा को हित-साधना में तत्पर रहने लगा। चित्रांगद स्वयं राज्यभार लेना नहीं चाहता था और अपने ज्येष्ठ-नाता गांगेय को ही राज्याभिषेक के लिए मना रहा था । परन्तु गांगेय अपनी प्रतिज्ञा पर अटल रहा और चित्रांगद को ही
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