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________________ तीर्थंकर चरित्र कुतिया शंखपुर में सुदर्शना नाम की राजकुमारी हुई । कालान्तर में महर्षि महेन्द्र मुनि विचरते हुए वहाँ आये, तब उन दोनों भाइयों ने उस चाण्डाल और कुतिया के विषय में प्रश्न पूछा । महात्मा ने उन दोनों की सद्गति बतलाई । वे श्रेष्ठिपुत्र, शंखपुर गए और राजकुमारी सुदर्शना को प्रतिबोध दिया । सुदर्शना ससार से विरक्त हो कर प्रवजित हुई और संयम पाल कर देवलोक में गई । पूर्णमद्र और माणि नद्र भी श्रावक-धर्म का पालन कर सौधर्म कल्प में इन्द्र के सामानिक देव हुए। वहाँ का आय पूर्ण कर के हस्तिनापुर के नरेश विश्वक्सेन के 'मधु' और 'कैटभ' नामक पुत्र हुए । वह नन्दीश्वर देव, भवभ्रमण करता हुआ वटपुर नगर में कनकप्रभ राजा की चन्द्राभा रानी हुई । राजा विश्वक्सेन ने मधु का राज्याभिषेक किया और कैटभ को युवराज पद दे कर प्रव्रजित हो गया। कालातर में मृत्यु पा कर ब्रह्मदेवलोक में ऋद्धि-सम्पन्न देव हुआ। ____ मधु और कैटभ ने राज्य का बहुत विस्तार किया । कई राजाओं को उन्होंने अपने अधीन कर लिया था, किंतु भीम नाम का पल्लिपति उनके राज्य में उपद्रव करता रहा । उसको नष्ट करने के लिए राजा मधु, सेना ले कर चला । मार्ग में वटपुर के राजा कनकप्रभ ने राजा मधु का स्वागत किया। भोजनादि के समय राजा की चन्द्राभा रानी भी सम्मिलित थी। रानी देख कर मधु मोहित हो गया और उसे प्राप्त करने का प्रयत्न किया। किंतु मन्त्री के समझाने से वह मान गया । पल्लिपति को जीत कर लौटते हुए मधु ने बलपूर्वक रानी चन्द्राभा का ग्रहण कर लिया और अपने साथ ले आया। अमहाय कनकप्रभ हताश हो गया और विक्षिप्त हो कर उन्मत्त के समान भटकने लगा। एक समय राजा मधु को राजसभा में बहुत देर लग गई। जब वह चन्द्राभा के भवन में पहुंचा, तो रानी ने विलम्ब का कारण पूछा । मधु ने कहा--" एक विषय का निर्णय करने में विलम्ब हो गया।" "ऐसा जटिल विषय क्या था"-रानी ने पूछा। 'व्यभिचार का अभियोग था"-- राजा ने कहा। " व्यभिचारी को आपने निर्दोष ठहरा कर सम्मानपूर्वक मुक्त कर दिया होगा"रानी ने पूछा । " नहीं, कठोर दण्ड दिया है उसे । नीति और सदाचार की रक्षा के लिए ऐसे अपराधियों को विशेष दण्ड दिया जाता है"--राजा ने कहा ।। __ "आपका यह न्याय दूसरों के लिए ही हैं । आप के लिए किसी न्याय, नीति और सदाचार की आवश्यकता नहीं होगी क्यों कि आप तो समर्थ हैं ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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