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कृष्ण के सुसीमा आदि से लग्न
आयुस्खरी नगरी में सौराष्ट्र का राजा राष्ट्रवर्धन राज करता था। नमुचि उसका महा बलवान पुत्र और सुसीमा नाम की रूप-सम्पन्न पुत्री थी। नमुचि अस्त्र-विद्या में सिद्धहस्त था। वह कृष्ण का अनुशासन नहीं मानता था। एकदा वह सुसीमा को साथ लेकर, सेना सहित प्रभास तीर्थ गया और डेरा डाल कर ठहरा । कृष्ण को यह माहिती मिली । वे बलराम को साथ ले कर प्रभास आये और नमुचि को मार कर तथा सेना को छिन्न भिन्न कर के सुसीमा को ले आये। उससे लग्न करके एक पृथक् भवन और सभी प्रकार की सुख-सामग्री प्रदान की। राजा राष्ट्रवर्धन ने सुसीमा के लिए विपुल दहेज और कृष्ण के लिए हाथी आदि भेंट भेजे। इसके बाद कृष्ण ने वीतभय नरेश की पुत्री गौरी के साथ लग्न किये और हिरण्यनाभ राजा की पुत्री पद्मावती के स्वयंवर में राम और कृष्ण, अरिष्टपुर गए । हिरण्यनाभ वसुदेवजी का साला (रोहिणी रानी का भाई) था । उसने अपने भानेज राम-कृष्ण का प्रेमपूर्वक सत्कार किया। राजा हिरण्यनाभ का रैवत नामक ज्येष्ठ बन्धु था, वह भ० नमिनाथ के तीर्थ में अपने पिता के साथ दीक्षित हो गया था। उसके रेवती, रामा, सीता और बन्धुमती पुत्रियाँ थीं। उनका बलरामजी के साथ लग्न किया था। स्वयंवर मण्डप में से कृष्ण ने पद्मावती का हरण किया और जो राजा युद्ध करने को तत्पर हुए, उन्हें जीत कर पद्मावती को प्राप्त की। फिर बलरामजी की पत्नियों को लेकर द्वारिका आये और पूर्व की भांति पद्मावती को सभी प्रकार की सुखसम्पत्ति प्रदान कर सुख-पूर्वक रहने लगे।
गांधार देश की पुष्कलावती नगरी में नग्नजित राजा का पुत्र चारुदत्त राज करता था। नग्नजित की मृत्यु के बाद उसके भाईयों ने चारुदत्त से राज्य छिन लिया। चारुदन के गान्धारी नाम की बहिन थी। वह रूप और गुणों की खान थी। चारुदत्त ने महाराजा कृष्ण की शरण ली और उनकी सहायता से अपना राज्य पुनः प्राप्त कर, शत्रुओं को नष्ट कर दिया । चारुदत्त ने अपनी बहिन गान्धारी के लग्न कृष्ण से कर दिये।
इस प्रकार कृष्ण के सत्यभामा, रुक्मिणी, जाम्बवती, लक्ष्मणा, सुसीमा, गौरी, पद्मावती और गान्धारी--ये आठ पटरानियां हुई ,
सोतिया-डाह
एकदिन रुक्मिणी के भवन में महात्मा अतिमुक्त कुमार श्रमण पधारे । उन्हें रुक्मिणी के भवन में प्रवेश करते देख कर, महारानी सत्यभामा वहाँ आई । रुक्मिणी ने महात्मा
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