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________________ रुक्मिणी विवाह दो नीलवस्त्र, तालध्वज- रथ, अक्षय बाणों से भरे तूणीर, धनुष और हल दिए और दशाहं को रत्नाभरण दिए । ३८७ कृष्ण को शत्रुजीत जान कर यादवों ने समुद्र के किनारे उनका राज्याभिषेक किया । इसके बाद बलराम, सिद्धार्थ-सारथि चालित रथ पर और कृष्ण, दारुक सारथि वाले रथ पर आरूढ़ हुए । दशार्ह आदि भी नक्षत्र गण के समान वाहनारूढ़ हो कर चले। सभी यादवों ने जयघोष करते हुए द्वारिका में प्रवेश किया । कुबेर के निर्देशानुसार, कृष्ण की आज्ञा से सभी को अपने-अपने आवास बता कर निवास कराया गया । देव ने द्वारिका पर स्वर्ण, रत्न, धन, वस्त्र और धान्यादि की प्रचुर वर्षा की, जिससे सभी जन समृद्ध हो गए । रुक्मिणी-विवाह कृष्ण-वासुदेव सुखपूर्वक द्वारिका में रहने लगे और श्री समुद्रपालजी आदि दशार्ह के निर्देशानुसार शासन का संचालन करने लगे । द्रव्य तीर्थंकर श्री अरिष्टनेमिजी भी मुखपूर्वक बढ़ने लगे। श्री राम कृष्ण आदि बन्धु, श्री अरिष्टनेमिजी से बड़े थे, फिर भी वे श्री अरिष्टनेमिजी के साथ बराबरी जैसा व्यवहार करते हुए खेलते, कीड़ा करते और उद्यान आदि में विचरण करते थे । भगवान् अरिष्टनेमिजी यौवनवय को प्राप्त हुए, किंतु चे जन्म से ही कामविजयी थे । काम-भोग के उत्कृष्ट साधनों के होते हुए भी इन का मन अविकारी रहता था । उनके माता-पिता और राम-कृष्णादि बन्धुगण, उनसे विवाह करने का आग्रह करते, किंतु वे स्वीकार नहीं करते थे । इधर राम-कृष्ण के पराक्रम से बहुत-से इनके वश में हो गए । दोनों बन्धु शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र के समान प्रजा का पालन करते थे । Jain Education International एकबार नारदजी घूमते-घामते द्वारिका की राज सभा में आये । राम-कृष्ण उनका आदर-सत्कार किया । नारदजी राजसभा से निकल कर अन्तःपुर में आये । वहाँ भी रानियों ने बहुत आदर-सत्कार किया । वे रानी सत्यभामा के भवन में गए। उस समय सत्यभामा शृंगार कर रही थी । वह दर्पण के सामने खड़ी रह कर बाल संवार रही थी । श्रृंगार में व्यस्त रहने के कारण वह नारदजी का आदर-सत्कार नहीं कर सकी । अपना अनादर देख कर नारदजी क्रोधित हुए और उलटे पाँव लौटते हुए सोचने लगे--- " सत्यभामा अपने रूप-सौंदर्य के गर्व में विवेकहीन हो गई है । अब इससे भी अधिक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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