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________________ प्रथमावृत्ति का प्रासंगिक निवेदन प्रथम भाग के बाद अब दूसरा भाग उपस्थित है। इसमें भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी भगवान् नमिनाथ स्वामी ओर बाईसवें तीर्थकर भयवान् अरिष्टनेमिजी, एसे तीन तीर्थक र भगवंतों का, चक्रवर्ती महापद्म, हरिसेन और जयसेन तथा आठवें नौवे वासुदेव-बलदेव के चरित्रों का समावेश हुआ है । भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी के धर्म-शासन में आठवे वामदेवबलदेव हुए । इनका चरित्र बड़ा है। सारी रामायण इनसे सम्बन्धित है । भगवान् अरिष्ट मिजी के चरित्र के साथ पाण्डवों और श्रीकृष्ण वासुदेव तथा महाभारत युद्ध का सम्बन्ध है । यह चरित्र उससे भी विशाल है। सम्यग्दर्शन वर्ष १७ अंक १२ दि. २०-६-६६ में लगा कर वर्ष २४ अंक ८ दि. २०-४-७३ तक को लेखमाला इसमें समाविष्ट है। __ पहले विनार था कि भगवान् अरिष्टनेमिजा का परिव पृयक तीसरे भाग में दिया आय, परंतु भगवान् मुनिसुव्रत स्वामी और भगवान् नमनाथजी का चरित्र २४८ पृष्ठ में ही पूरा हो जाने के कारण और बाइडिंग आदि के खर्चे की बचत देख कर वर्तमान रूप दिया गया है । अब अंतिम--तीसरे भाप के लिए अंतिम चक्रवर्ती ब्रह्मदस और भगवान् पार्श्वनाथस्वामी नथा परम तीर्थंकर श्रमण भगवान महावीर प्रभु का चरित्र रहेगा। प्रथम भाग में ही में बता चुका हूँ कि इसमें लिखा हुआ चरित्र सर्वथा प्रामाणिक नहीं है । इस दूसरे भाग में भी ऐसे स्थान होंगे जो आगम-विधान से मित्रता रखले हों। यह एक अभाव की पुति है । इसमें प्रो बात सिद्धांत में विपरीत हा, उसका सुधार हो कर | आवस्यक है। यह ग्रंथ मेंने प्रख्यतः त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र के आधार पर लिया है। इसे मंगोधन करने और प्रम. दखने वाला भी दसरा कोई नहीं मिला। इसलिये भूले रहना स्वाभाविक ही है। धर्मप्रचार और ज्ञान वर्धन की दृष्टि से मंच की ओर से धर्म-साहित्य का प्रकाशन होता है । यह ग्रंथ संघ द्वारा प्रकाशित संस्कृति रक्षक माहित्य-रत्नमाला का ५३ वा रत्न है । धर्मप्रिय उदार महानभावों की सहायता से स्वल्प मत्य में साहित्य दिया जाता है। तदनमार इस ग्रंथ का मन्य भी लागत से कम ही रखा है। आशा है कि धर्मप्रिय पाठक अवश्य लाभान्वित होंगे। मलाना -~-रतनलाल डोशी फाल्गुन शु. १ संवत् २०३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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