________________
रावण की विद्या साधना
२५
सुन्दरी कैकसी की बात सुन कर और रूप देख कर रत्नश्रवा प्रसन्न हो गया और अपने ईष्टजनों को पूछ कर कैकसी के साथ लग्न कर लिये और 'पुष्पक' नाम के विमान में बैठ कर क्रीड़ा करने के लिए चले गए । कैकसी के उदर में सिंह के स्वप्न के साथ एक जीव उत्पन्न हुआ। गर्भ के प्रभाव से कैकसी के वदन पर और वाणी में क्रूरता आ गई। उसका शरीर कोमलता छोड़ कर दृढ़ हो गया । दर्पण उपस्थित होते हुए भी वह अपना मुंह, खङ्ग की दमक में देखने लगी। उसमें साहस इतना बढ़ा कि वह इन्द्र पर भी अपनी आज्ञा चलाने का विचार करने लगी। अकारण ही वह मुंह से हुँकार करने लगी। उसने गुरुजनों को प्रणाम करना भी बन्द कर दिया । शत्रुओं के मस्तक अपने चरणों में झुकेऐसे मनोरथ करने लगी । गर्भ के प्रभाव से इस प्रकार उसने दारुण भाव धारण कर लिया । गर्भकाल पूर्ण होने पर उसने एक महापराक्रमी पुत्र को जन्म दिया । जन्म के बाद ही पुत्र की विशेषताएँ प्रकट होने लगी। वह माता के पास शय्या में भी शांति से नहीं सोता और उछलता, हाथ-पाँव मारता हआ चंचलता प्रकट करता था। एक बार व्यन्तर जाति के राक्षसनिकाय के इन्द्र भीम ने उसके पूर्वज राजा मेघवाहन को दिया हआ नौ मणियों वाला प्रभावशाली हार, उस बालक के देखने में आया। उसने तत्काल उठा कर गले में पहन लिया। हार की मणियों में उसके मुंह का प्रतिबिंब पड़ने लगा और वह दस मुंह वाला दिखाई देने लगा। इससे उसका नाम “ दशानन" प्रसिद्ध हो गया। उसके साहस को देख कर माता आश्चर्य करने लगी, तब रत्नश्रवा ने कहा--'मझे चार ज्ञान के धारक मुनिराज ने कहा था कि इस हार को धारण करनेवाला अर्द्धचकी होगा।'
___कालान्तर में कैकसी ने सूर्य के स्वप्न से गर्भ में आये हुए पुत्र को जन्म दिया । उसका नाम 'भानुकर्ण' रखा गया। उसका दूसरा नाम 'कुंभकर्ण' था। इसके बाद एक पुत्री को जन्म दिया, जिसके नख, चन्द्र जैसे थे । इससे उसका नाम 'चन्द्रनखा' दिया। उसका विख्यात नाम 'सूर्पणखा' हुआ । इसके बाद एक पुत्र और हुआ जिसका नाम 'विभीषण' हुआ । तीनों भाई दिनोदिन बढ़ने लगे।
रावण की विद्या साधना
एक बार रावण अपने बन्धुओं के साथ खेल रहा था। अचानक उसने आकाश की ओर देखा । उसने देखा कि एक विमान उड़ रहा है और उसमें कोई बैठा है । उसने अपनी माता कैकसी से पूछा--'यह कौन उड़ रहा है--आकाश में ?' कैकसी ने कहा;--
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org