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वानर वंश
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वह किष्किन्ध नरेश का अपशब्दों द्वारा अपमान करने लगा और युद्ध के लिए तत्पर हो गया । उपस्थित राजाओं के दो विभाग हो गए। सुकेश नरेश आदि कुछ राजा, किष्किंध के पक्ष में आ गये और कुछ विजयसिंह के पक्ष में हो गए | लम्बे समय तक घमासान युद्ध होता रहा । किष्किंध नरेश के अनुजबन्धु 'अन्धक' के प्रहार से विजयसिंह का अन्त हुआ और साथ ही इस युद्ध का भी अन्त हो गया । किंतु विजयसिंह की मृत्यु की बात सुन कर उसका पिता राजा अशनिवेग ने किष्किंधा पर चढ़ाई कर दी। लंका नरेश सुकेश और किष्किंध नरेश, अपने भाई अन्धक के साथ युद्ध में आ डटे । भयंकर युद्ध हुआ । इसमें अन्धककुमार मारा गया। राक्षस-सेना और वानर सेना भी भाग गई और लंका नरेश सुकेश तथा किष्किंध नरेश अपने परिवार के साथ भाग कर 'पाताललंका' + में चले गये । अशनिवेग ने लंका का राज्य 'निधति' नाम के विद्याधर को दिया । कालान्तर में अशनिवेग ने अपने पुत्र सहस्रार को राज्य दे कर प्रव्रज्या स्वीकार कर ली ।
पाताल-लंका में रहते हुए सुकेश के इन्द्राणी नामकी पत्नी से -माली, सुमाली और माल्यवान, ऐसे तीन पुत्र हुए और श्रीमाला के उदर से किष्किन्ध के 'आदित्यरजा' और 'रुक्षरजा' नाम के दो पराक्रमी पुत्र हुए। एक बार किष्किन्ध घूमता हुआ मधु नाम के पर्वत पर गया । वहां की शाभा देख कर वह आकर्षित हुआ और वहीं अपने परिवार के साथ रहने लगा । जब सुकेश के माली आदि पुत्र, समर्थ एवं बलवान हुए और उन्होंने जाना कि हमारा राज्य शत्रुओं के अधिकार में है, तो वे तत्काल वहाँ से चले और लंका में आकर निर्धाति से युद्ध करके अपना राज्य पुनः प्राप्त कर लिया और माली राज्य करने लगा । इसी प्रकार किष्किन्धा का राज्य 'आदित्यरजा' ने ग्रहण कर लिया ।
रथनुपुर नगर के सहस्रार नरेश (अशनिवेग के पुत्र) की 'चित्तसुन्दरी' रानी के गर्भ में कोई उत्तम देव -- मंगलकारी शुभ स्वप्न के साथ आया । कुछ दिनों के बाद रानी के मन में अभिलाषा उत्पन्न हुई कि - " मैं इन्द्र के साथ संभोग करूँ ।" यह दोहद ऐसा था कि जो किसी को कहने और पूर्ण होने के योग्य नहीं था । वह मन ही मन घुलने लगी । उसमें दुर्बलता बढ़ गई। यह देख कर राजा ने उसकी उदासी एवं दुर्बलता का कारण पूछा । पहले तो वह टालती रही, किन्तु शपथपूर्वक पूछने पर उसने कहा ; --
'महाराज मैं किस मुँह से कहूँ ? मेरे मन में ऐसी नीच एवं दुराचारमय इच्छा
चल रही है कि ऐसी इच्छा से तो मरना श्रेष्ठ है । यह इच्छा कभी पूर्ण नहीं की जा सकती ।
"
+ यह 'पाताल लंका' अधोलोक में इसी भूमि पर थो, या इस भूमि के नीचे ? वहां व कितनी दूर थी ? अर्जुन-परम्परा में भी 'पाताल-लका' का उल्लेख है ।
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