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तीर्थकर चरित्र
चय दिया । वसुदेव उसकी उत्कृष्ट कला पर मोहित हो गए और इच्छित वस्तु माँगने का आग्रह किया। श्यामा ने कहा--" यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं, तो वचन दीजिये कि आप मुझे सदैव अपने पास रखेंगे, मुझे छोड़ कर कभी नहीं जावेंगे।" वसुदेव ने पूछा"प्रिय ! यह कैसी माँग है--तुम्हारी ? क्या कारण है--इसका?" श्यामा ने कहा
___ "वैताढ्य गिरि पर किन्नरगीत नगर में अचिमाली राजा था। उसके ज्वलनवेग और अशनिवेग नाम के दो पुत्र थे । अचिमाली ने ज्वलनवेग को राज्य दे कर प्रव्रज्या स्वीकार की । ज्वलनवेग के अचिमाला नाम की रानी से अंगारक नाम का पुत्र हुआ और अशनिवेग की सुप्रभा रानी के गर्भ से मैंने जन्म लिया । ज्वलनवेग राजा, अपने भाई अशनिवेग को राज्यभार दे कर स्वर्ग सिधारे । इसके बाद ज्वलनवेग के पुत्र अंगारक ने विद्या के बल से मेरे पिता से राज्य छिन कर अपना अधिकार कर लिया। मेरे पिता ने अंगीरस नामक चारणमुनि से पूछा कि--" मुझे मेरा राज्य मिलेगा या नहीं ?" मुनिराज ने कहा
"तेरी पुत्री श्यामा के पति के प्रभाव से तुझे राज्य मिलेगा । जलावर्त्त सरोवर के निकट जो युवक मदोन्मत्त हाथी को जीत कर उस पर सवार हो जायगा, वही तुम्हारी पुत्री का पति होगा और वही तुझे राज्य दिलावेगा।"
मुनिराज की वाणी पर विश्वास कर के मेरे पिता यहाँ चले आये और एक नगर बसा कर रहने लगे। उन्होंने जलावर्त सरोवर के निकट आपकी खोज के लिए दो विद्याधरों की नियुक्ति कर दी। इसके बाद आप पधारे और अपना लग्न हुआ। पूर्व-काल में धरणेन्द्र, नागेन्द्र और विद्याधरों ने यह निश्चय किया था कि--"जो धर्म-साधना कर रहा हो, जिसके पास स्त्री हो, अथवा जो साधु के समीप रहा हो, उस व्यक्ति को यदि कोई मारेगा और वह विद्यावान हुआ तो उसकी विद्या नष्ट हो जायगी।" इस अभिशाप के कारण मैं आपको कहीं अकेला जाने देना नहीं चाहती। पापी अंगारक, पक्का शत्रु बना हुआ है । वह घात लगा कर या छल से आप को मारने की चेष्टा करेगा । आपको कहीं नहीं जाना चाहिए।"
वसुदेव वहीं रह कर कला के प्रयोग से मनोरंजन और सुखोपभोग करते हुए काल व्यतीत करने लगे । एकदा रात्रि के समय अंगारक आया और श्यामा के साथ सोये हुए निद्रा-मग्न वसुदेव का साहरण कर ले उड़ा। वसुदेव की नींद खुली । उन्होंने अनुभव किया कि उनका हरण किया जा रहा है। उन्होंने श्यामा के मुंह जैसा अंगारक और उसके पीछे खड्ग ले कर रोषपूर्वक आती हुई श्यामा को देखा, जो चिल्ला रही थी--"ठहर, ओ पापी ! मैं तुझे
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