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________________ तीर्थंकर चरित्र प्रस्तुत की, जिसे प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार की। अपना कार्य सिद्ध कर के राजदूत, धनकुमार के समीप आया और राजकुमारी का पत्र समर्पित किया । कुमार ने पत्र खोला और पढ़ने लगा । उसमें लिखा था- २५२ "हृदयेश ! जब से आर्य पुत्र की छवि चित्रपट पर देखी, तभी से अपने-आप हृदय समर्पित हो गया है और यह ऋतुराज बसंत मेरे लिये दुखद बन गया है। जबतक आर्यपुत्र की सुदृष्टि नहीं होती, तबतक बसंत दुखदायक रहेगा और ग्रीष्म तो भस्म ही कर देगा । अतएव अनुग्रह की प्रर्थना है ।" पत्र ने कुमार के हृदय में स्नेह का संचार किया । वे भी कुमारी के स्नेह प्रभावित हो गए । उन्होंने पत्र लिख कर निम्न शब्दों में अपने भाव व्यक्त किये; " शुभे ! बिना साक्षात्कार के ही पत्र के माध्यम से, आपकी कल्पित छबि ने इस रिक्त हृदय में आसन जमा लिया है । अब याचना करने की तो आवश्यकता ही नहीं रही । आशा है कि इस भावकर्षण से शीघ्र ही सामीप्य का योग बन जायगा ।" "अपने कण्ठ से सदैव संलग्न रहने वाली यह मुक्तामाला भेंट स्वरूप प्रेषित है । विश्वास है कि यह स्वीकृत होकर उचित स्थान प्राप्त करेगी ।" दूत ने राजकुमार का स्नेह देखा और नरेश द्वारा सम्बन्ध स्वीकृत होने का शुभ सम्वाद सुनकर तथा पत्र मुक्तामाला ले कर प्रस्थान किया । राजकुमारी सम्बन्ध स्वीकृत होने का समाचार सुन कर तथा धनकुमार का पत्र और भेंट पा कर अत्यन्त प्रसन्न हुई। उसने दूत को मूल्यवान पुरस्कार दिया । शुभ मुहूर्त में सिंह नरेश ने अपने वृद्ध मन्त्रियों और सरदारों के साथ राजकुमारी को विपुल सम्पत्ति सहित अचलपुर भेजी । प्रस्थान के समय माता ने पुत्री को योग्य शिक्षा दी और अश्रुपूर्ण नेत्रों से बिदाई दी । स्वयम्बरा राजकुमारी का अचलपुर नगर के बाहर उद्यान में पड़ाव हुआ । शुभ दिन और शुभ मुहूर्त में लग्नोत्सव सम्पन्न हुआ और इस प्रेमी युगल के दिन हर्षोल्लास में व्यतीत होने लगे । एक दिन धनकुमार अश्वारूढ़ हो कर उद्यान में पहुँचा । वहाँ चार ज्ञान के धारक मुनिराज श्री वसुन्धरजी धर्मोपदेश दे रहे थे । राजकुमार घोड़े पर से नीचे उतर कर धर्मोपदेश सुनने के लिये सभा में बैठा। थोड़ी ही देर में विक्रमधन नरेश, महारानी धारिणी देवी और युवराज्ञी धनवती भी वहाँ आई और मुनिराज श्री का उपदेश सुनने लगी । उपदेश पूर्ण होने के बाद राजा ने मुनिराज से पूछा ;भगवन् ! मेरा पुत्र धनकुमार गर्भ में था, तब उसकी माता ने स्वप्न में एक 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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