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________________ गुप्तचरों ने सीता की कलंक - कथा सुनाई पत्नियों ने योजनापूर्वक सीताजी पर दोषारोपण कर के नगरभर में प्रचार कर दिया। लोगों में यह चर्चा मुख्य बन गई। नगर में होती हुई हलचल और अच्छी-बुरी प्रवृत्ति की जानकारी प्राप्त करने के लिए, राज्य की ओर से उत्तम, विश्वास योग्य एवं चारित्र सम्पन्न अधिकारी नियुक्त किये गये थे । वे आवश्यक भेद की बातें प्राप्त कर के नरेश को निवेदन करते । सीता की होती हुई निन्दा उन अधिकारियों ने भी सुनी। वे अधिकारी सीता पर लगाया हुआ दोषारोपण सर्वथा असत्य मानते थे । किंतु उनका कर्त्तव्य था कि इसकी जानकारी रामभद्रजी को करवावें । वे चिंतित हो गए । अन्त में वे श्री रामभद्रजी के निकट आये । परन्तु उनकी वाणी अवरुद्ध हो रही थी । वे थरथर काँपने लगे । श्रीराम ने उन अधिकारियों की ऐसी दशा देख कर कहा; -- 4t 'मूक क्यों हो ? बोलते क्यों नहीं ? घबड़ाओ नहीं, जैसी बात हो, स्पष्ट कह दो। मैं तुम पर विश्वास करता हूँ । तुम्हें राज्य का हितेषी मानता हूँ । तुम्हें निर्भय हो कर सत्य बात बतला देनी चाहिए ।" राम का अभय-वचन पा कर विजय नाम का अधिकारी बोला; 'स्वामिन् ! आपको एक बात अवश्य निवेदन करनी है । मुझे पूर्ण विश्वास है कि बात झूठी है और आपश्री के लिए विशेषरूप से आघातजनक है। किंतु उस दुःख :दायक बात को दबा कर रखना भी स्वामी को अन्धकार में रखना है। इसलिए वह महादुःखदायक बात भी कहने को विवश हो रहा हूँ ।" " प्रभो ! परम पवित्र महारानी सीतादेवी पर नागरिकजन दोषारोपण कर रहे हैं। लोग अघटित को भी कुयुक्ति से सत्य जैसा बना कर घटित कर रहे हैं। नगर में यह चर्चा विशेषरूप से चल रही है कि रावण ने रतिक्रीड़ा की इच्छा से ही देवी सीता का हरण किया था । सीताजी उसके यहाँ अकेली ही थी और लम्बे काल तक रही थी भले ही देवी, रावण से विरक्त रही हो, परन्तु महाबली रावण अपनी इच्छा पूर्ण किये बिना कैसे रहा होगा ? उसने बलात्कार कर के भी अपनी इच्छा पूर्ण की ही होगी । कौन था वहाँ उस कामान्ध नरवृषभ को रोकने वाला ? अतएव सीता की पवित्रता नष्ट हो चुकी है । फिर भी राम ने मोहवश उसे हृदयेश्वरी बना कर सर्वाधिक सम्मान दिया है। क्या यह उत्तम राजकुल के योग्य है ? बड़े लोग खोटा काम कर लें, तो उन्हें कोई नहीं कह सकता । यदि ऐसा ही काम कोई साधारण मनुष्य करता, तो उसकी क्या दशा होती ?" इस प्रकार नगर के लोग परस्पर चर्चा करते हैं। लोग महादेवी को कलंकित 66 Jain Education International For Private & Personal Use Only -- www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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