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हनुमान का उद्यान में उपद्रव करना
दूत हूँ। मेरे सामने रावण और उसकी सेना का कोई महत्व नहीं। यदि आप कहें, तो मैं रावण और उसकी सेना का पराभव कर के आपको अपने कन्धे पर बिठा कर ले जा सकता हूँ"-हनुमान ने अपनी शक्ति का परिचय देते हुए कहा ।
"भद्र ! तुम समर्थ हो और सब कुछ कर सकते हो। किंतु इससे तुम्हारे स्वामी की कीर्ति को क्षति पहुंचती है। वे स्वयं रावण को पराजित करके मुझे ले जावें, इसीमें उनकी शोभा है । दूसरी बात यह कि मैं पर-पुरुष का स्पर्श नहीं करती, इसलिए तुम्हारे साथ में नहीं आ सकती। अब तुम यहां से शीघ्र जाओ और अपने स्वामी को मेरा सन्देश दे कर निश्चिन्त करो। तुम्हारे जाने के बाद ही आर्य पुत्र यहां के लिए उद्यम करेंगे"सीता ने हँसते हुए कहा ।
-“देवी ! मैं वहीं जाऊँगा । किन्तु मेरे आने का थोड़ा परिचय इन राक्षसों को भी दे दूं जिससे इनको सद्बुद्धि प्राप्त होने का निमित्त मिले।" सीता ने हनुमान की इच्छा को मान्य करते हुए कहा-"बहुत अच्छा ।"
हनुमान का उद्यान में उपद्रव करना
हनुमान अपने बाहुबल का परिचय देने के लिए उस देवरमण उद्यान को नष्ट करने लगे। वे उछलते-कूदते हुए लताओं से लगा कर बड़े-बड़े वृक्षों तक को तोड़-उखाड़ कर इधर-उधर फेंकने लगे। उस उद्यान के चारों ओर के द्वारों पर राक्षसों की चौकी थी। उद्यान को नष्ट किया जाता हुआ देख कर राक्षस दौड़े और अपने मुद्गर से हनुमान पर प्रहार करने लगे। किन्तु उनके सभी शस्त्रास्त्र व्यर्थ गए । हनुमान, उन टूटे हुए वृक्षों की शाखाओं से राक्षसों को मारने लगे। उनके प्रहार से आक्रामक धराशायी हो गए। उनके कुछ साथी राक्षस भागते हुए रावण के पास गए और इस घटना का वृत्तांत सुनाया। रावण ने अपने पुत्र अक्षयकुमार को, हनुमान को मारने के लिए आज्ञा दी । अक्षयकुमार सेना ले कर चढ़ आया। दोनों में अस्त्र-प्रहार होने लगा। अन्त में हनुमान ने अक्षयकुमार को गत-प्राण कर दिया । भाई के मरने का दुःखद समाचार सुन कर, इन्द्रजीत हनुमान से युद्ध करने आया । दोनों वीरों में बहुत देर तक घोर संग्राम हुआ। दोनों के अस्त्र धनघोर मेघ-वर्षा की भाँति एक-दूसरे पर प्रहार करने लगे। इन्द्रजीत के सभी अस्त्रों को हनुमान ने अपने अस्त्रों से बीच ही में काट कर गिरा दिये और अपने युद्ध-कोशल से इन्द्रजीत की
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