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________________ १५८ तीर्थकर चरित्र -"नहीं, पूज्य ! में स्वामी की आज्ञा से सीताजी की खोज करने लंका जा रहा हूँ। मार्ग में महेन्द्रपुर देख कर माता के विपत्तिकाल की बात स्मरण हो आई और अचानक यह बखेड़ा खड़ा कर दिया । मुझे शीघ्र ही लंका पहुंचना है और आपसे भी निवेदन है कि आप अपनी सेना ले कर राम-लक्ष्मण के पास जाइए।" हनुमान आये बढ़ और महेन्द्र नरेश, सेना ले कर किष्किन्धा की ओर चले। दावानल का शमन आगे बढ़ते हुए हनुमान की दृष्टि दधिमुख द्वीप पर पड़ी। उन्होंने दो मुनियों को ध्यानमग्न तथा उनके समीप ही तीन कुमारियों को भी साधनारत देखी, साथ ही उस द्वाप पर उठ रही दावानल की भयंकर ज्वालाएं भी देखी। उन्होंने सोचा--'यह दावानल इन महामुनियों, कुमारियों बोर बन्छ अनेक प्राणियों का संहार कर देगा। इसको बुझाना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने अपनी विद्या का प्रयोग कर भयंकर अग्नि का तत्काल शमन कर दिया । हनुमान ने मुनियों की वंदना की । तीनों कुमारियों की भी साधना पूर्ण हो चुकी थी। उन्होंने मुनिवरों को वन्दना करके हनुमान से कहा । . __ "हे परमार्हत् ! आपने हमें इस भयंकर एवं विनाशकारी दावानल से बचाया है। आपकी सहायता से स्वल्पकाल में ही हमारी विद्या सिद्ध हो गई। हम बापकी पूर्ण आभारी हैं।" --"परन्तु तुम्हारा परिचय क्या है"- हनुमान ने पूछा। -"हम दधिमुख नयर के अधिपति गन्धर्वराज की पुत्रियाँ हैं । हमें प्राप्त करने के लिए बहुत-से विद्याक्षरों ने पिता के सामने याचना की। उनमें 'अंगारक' नाम का एक विद्याधर थी था । हमारे पिताश्री ने किसी की भी मांग स्वीकार नहीं की। एकवार उन्होंने किसो ज्ञानी मने को पूछा, तो उन्होंने कहा कि-"साहसमति नामक विद्याधर को मारने वाला ही तुम्हारी पुत्रियों का पति होगा।" मेरे पिता, साहसगति को मारने वाले की खोज कर रहे थे, किन्तु अबतक पता नहीं लगा। हम तीनों बहिने भी अपने भावी पति को जानने के लिए यहाँ बा कर विद्या साध रही थी कि हम पर अत्यन्त बासक्त होने के बाद निराश हो कर रुष्ट हुए अंगारमर्दक ने हमें साधना-भ्रष्ट करने के लिए आग लगा दी। किन्तु आपने कारण हो कृपा कर के हमें बचा लिया । बो मनोगामिनी विद्या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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