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________________ ૪૮ तीर्थंकर चरित्र तो एक विषादोत्पादक वातावरण हो गया । अन्तःपुर में रोना-पीटना मच गया । रावा अपनी बहिन से मिलने आया, तो वह भाई के गले लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी । उसने कहा; - "भाई ! में लूट गई। मेरे पति, देवर, पुत्र और चौदह हजार कुलपति मारे गए। हमारा राज्य छिन कर हमें निकाल दिया। बन्धु ! तेरा दिया हुआ राज्य, तेरे सामने ही शत्रुओं ने छिन लिया और तेरे पराक्रमी बहनोई तथा भानेज को मार कर, बहिन को विधवा एवं भिखारिणी बना डाली | यह तेरा एक भानेज बचा है । यह भी निराश्रित हो कर दरिद्र दशा में यहाँ आया है । मेरे वीर-बन्धु ? तुझ त्रिखण्डाधिपति की बहिन की ऐसी दुर्दशा तुझ से कैसे सहन हो सकेगी ? बता अब में क्या करूँ ? कहाँ जा कर रहूँ मेरे हृदय में भड़की हुई ज्वाला कौन शान्त करे ? पाताल-लंका के राज्य पर, मेरा और तेरे भानेज का सर्वस्व लूटने वाला वहाँ अधिकार कर के बैठा आनन्द कर रहा है और हमें भटकते भिखारी बना दिया है। इसका तेरे पास कोई उपाय है भी या नहीं ?" BL सारे अन्तःपुर में रोना पीटना मच गया । सर्वत्र शोक व्याप्त हो गया और रावण स्वयं भी उदास हो कर चिन्तामग्न हो गया । उसने बहिन को आश्वासन देते हुए कहा ; - 'बहिन ! तु शान्त होजा । तेरा सुहाग लूटने वाले, पुत्र घातक और राज्य हड़पने वालों को मैं यमधाम पहुंचाऊँगा और तेरा राज्य तुझे दूंगा। तू यहाँ शान्ति के साथ रह । जो मर गये, वे तो अब आने वाले नहीं है, अब उनके लिए शोक करना छोड़ दे ।” मन्दोदरी रावण की दूती बनी रावण, साहस कर के सोता को ले आया । किन्तु उसकी मनोकामना पूरी नहीं हुई। सीता उससे सर्वथा विमुख हो रही । वह रावण के सामने भी नहीं देखती थी और उसके संमुख आते ही दुत्कारती रहती थी। इतना ही नहीं, सीता भूखी रह कर प्राण गँवाने के लिए तत्पर थी । रावण के मन में सोता की प्रतिकूलता भी स्थायी चिन्ता का कारण बन गई। सीता के सौंदर्य पर रही हुई आसक्ति ने जो कामाग्नि प्रज्वलित कर दी थी. उसमें भी वह सुलग रहा था। दूसरी ओर उसकी बहिन विशेष चिन्ता ले कर आगई। इस परिस्थिति ने रावण को अशान्त एवं उद्विग्न बना दिया। वह शय्या पर पड़ा हुआ करवटें बदल रहा था । उसी समय उसकी महारानी ' मन्दोदरी' आई । उसने पति को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001916
Book TitleTirthankar Charitra Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1988
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size14 MB
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