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________________ द्वितीयावृत्ति के विषय में निवेदन तीर्थकर चरित्र भाग १ की प्रथमावृत्ति सन् १९७३ में प्रकाशित हुई थी, समाज में इसका अच्छा उपयोग हुआ, धर्मकथानुयोग का विषय होने से पाठकों की रुचि इसमें बनी रही । ज्यों-ज्यों धर्मप्रेमी महानुभावों को इसका परिचय होने लगा, त्यों-त्यों इसकी मांग बढ़ती गयी । पुस्तक की उपयोगिता इसी से प्रकट है कि इसकी २००० प्रतियाँ कुछ ही समय में बिक गयी । पाठकों की ओर से इसके पुनर्प्रकाशन हेतु पत्र आने लगे। उत्तरोत्तर बढ़ती हुई मांग को देख कर मूल आगम प्रकाशन के महत्त्वपूर्ण कार्य के बाद चिरप्रतिक्षित तीथंकर चरित्र भाग १ की यह द्वितीयावृत्ति प्रकाशित करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है। इस प्रकाशन में निम्न महानुभावों ने अग्रिम पुस्तकें क्रय कर अर्थ सहयोग प्रदान किया, अतएव संघ का आपका आभारी हैं१५००)०० सुश्राविका श्रीमती वी. वसंताबाई, सिरूगुप्पा (कर्नाटक) । स्व. श्री विजयकुमारजी मकाना की १३ वीं पुण्य तिथि के उपलक्ष में । श्रीमान् इन्द्रचन्दजी लुणावत, गेयलेगफुग (भूटान) के सद्प्रयत्नों से निम्न राशि प्राप्त हुई-- ३१५)०० श्रीमान् सुरजमलजी मोहनलालजी लुणावत, गेयलेगफुग (भूटान)। १६५)०० श्रीमान् फतेचन्दजी लुणावत, गेयलेगफुग (भूटान)। १६५).. श्रीमान झुमरमलजी लुणावत, गेयलेगफुग (भूटान)। ४६५).. श्रीमान् घेवरचन्दजी सम्पत्तलालजी लुणावत, गेयलेगफुग (भूटान)। ४.५)०० श्रीमान् हनुमानमल जी बालचन्दजी लुणावत, नोखामंडी (राज.) (पू. माताजी के पचोले की तपस्या की खुशी में) आशा है समाज के अन्य धर्मप्रेमी महानुभाव भी आपका अनुकरण कर साहित्य सेवा में उदारतापूर्वक अपना योगदान देंगे। संघ का प्रयत्न प्रारम्भ से ही अल्प मल्य में साहित्य प्रकाशित कर जिनवाणी के प्रचार का रहा है । इस आवृत्ति में भी लागत से अल्प मूल्य रखा गया है । आशा है धर्म प्रिय महानुभाव इससे लाभान्वित होंगे। सैलाना (म. प्र.) विनीत दिनांक १८-४-१९८५ पारसमल चण्डालिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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