________________
भं. ऋषभदेवजी - मरुदेवा के गर्भ में अवतरण
'स्वामिनी ! आपने प्रथम स्वप्न में बलवान् वृत्रभ देखा है । इसका अर्थ यह है कि आपका होने वाला पुत्र रत्न ऐसा पराक्रमी और लोकोत्तम महापुरुष होगा -- जो मोहरूपी कीचड़ में फँसे हुए धर्मरूपी रथ का उद्धार करेगा ।
२ हस्ति दर्शन का फल यह है कि आपका पुत्र महत् पुरुषों का भी गुरु होगा और महान् बलशाली होगा ।
३ सिंह- दर्शन से आपका पुत्र, पुरुषों में सिंह के समान, निर्भय, शूरवीर, धीर और पराक्रमी होगा ।
४ लक्ष्मीदेवी का दर्शन यह बताता है कि आपका महान् पुण्यशाली पुत्र, तीन लोक की राज्यलक्ष्मी का अधिपति होगा ।
५ पुष्पमाला से वह पुण्यदर्शन वाला होगा और संसार के प्राणी उनकी आज्ञा को माला के समान शिरोधार्य करेंगे ।
३७
६ मनोहर और आनन्दकारी होने का संकेत, चन्द्रदर्शन करा रहा है ।
७ मोह एवं अज्ञानरूपी अन्धकार का नाग कर के ज्ञान का प्रकाश करने वाला विश्वोत्तम महापुरुष होने की सूचना सूर्यदर्शन से मिलती है ।
८ महाध्वज बता रहा है कि गर्भस्थ पुण्यशाली आत्मा, महान् प्रतिष्ठित एवं यशस्वी होगा ।
९ पूर्ण कलश का फल है - सभी प्रकार की विशेषताओं ( अतिशयों) से परिपूर्ण होना ।
१. जिस प्रकार पद्मसरोवर, मनुष्य के तन का मैल दूर कर के शान्ति देता है, उसी प्रकार आपका होने वाला पुत्र रत्न, संसारी प्राणियों के पापरूपी ताप का हरण कर के, आत्मा को पवित्र और शीतल बनावेगा ।
११ समुद्र-दर्शन बताता है कि आपका पुत्र, समुद्र के समान गम्भीर होगा ।
१२ विमान दर्शन का फल है कि महान् भाग्यशाली ऐसे वैमानिक देव भी आपके पुत्र रत्न की सेवा करेंगे ।
१३ रत्नराशि बताती है कि वह महान् आत्मा, गुण-रत्नों की खान होगी ।
१४ महान् तेजस्वी होगा वह महापुरुष - यह सन्देश निर्धूम अग्नि का अंतिम
स्वप्न दे रहा है ।
ये चौदह स्वप्न बता रहे हैं कि गर्भस्थ जीव, चौदह राजलोक का स्वामी होगा ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org