________________
तीर्थङ्कर चरित्र
धिपति भी शत्रु-सैन्य का आगमन सुन कर, अपनी सेना के साथ, अपने देश की सीमा पर आ धमके । भीषण युद्ध हुआ । इस युद्ध में छहों राजा एक ओर थे । उनकी शक्ति भी विशाल थी और कुंभराजा अकेले थे। मिथिलेश की हार हुई है । उन्होंने विदेह का मोर्चा छोड़ दिया और मिथिला नगरी में आ कर उसके किले के द्वार बन्द करवा दिये । छहों राजाओं ने मिथिला के बाहर घेरा डाल दिया।
मित्रों को प्रतिबोध
कुंभ राजा, छहों राजाओं से बचाव के उपाय ढूंढने लगे । उन्हें कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। वे इसी चिंता में बैठे थे कि भगवती मल्लिकुमारी ने आ कर पिता की चरणवंदना की । राजा चिंतातुर थे। उन्होंने कुमारी का आदर नहीं किया। पूछने पर राजेन्द्र ने कहा-"पुत्री ! तेरे ही कारण यह संकट उत्पन्न हुआ है इस संकट से बचने का मुझे कोई उपाय दिखाई नहीं देता । मैं इसी चिंता में बैठा हूँ।"
पिता की बात सुन कर राजकुमारी ने कहा--
"तात ! आप चिंता नहीं करें और छहों राजाओं को भिन्न-भिन्न दूत के द्वारा कहलाइये कि "हम अपनी कन्या आपको देंगे। आप चुपचाप रात के समय यहाँ आ जावें।" इस प्रकार छहों राजाओं को गर्भ-गृह में पृथक्-पृथक् रखिये और मिथिला के द्वार बन्द ही रख कर, उस पर कड़ा पहरा रख दीजिए । इसके बाद मैं सब सम्हाल लूंगी।"
मिथिलेश को यह सलाह अच्छी लगी। उन्होंने सोचा होगा-"राजकुमारी कितनी चतुर है । इस प्रकार सहज ही में छहों शत्रुओं को अधिकार में कर लिया जायगा। फिर तो संकट टला ही समझो।" उन्होंने शीघ्र ही प्रबन्ध किया। छहों नृपति, कुंभ नरेश का सन्देश पा कर बहुत प्रसन्न हुए और समझे कि "हमें ही राजकन्या मिलेगी।" वे प्रसन्नता पूर्वक चले आये।
+ ज्ञातासूत्र में युद्ध होने का उल्लेख है, किन्तु 'त्रिशष्ठि-शलाका पुरुष चरित्र' में केवल मिथिला नगरी को घेरा डालने का ही उल्लेख है।
इससे यह स्पष्ट होता है कि उस समय शत्रु की बात पर भी विश्वास किया जाता था । व्यवहार में झूठ ने इतना स्थान नहीं बना लिया था-जितना वर्तमान में है। आज सत्य-प्रियता बहुत घट गई है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org