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भ० मल्लिनाथजी--पूर्वभव के मित्रों का आकर्षण
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वर्णन करें । वह तो अलोकिक सुन्दरी है । उसके समान सौन्दर्य, इस सृष्टि पर दूसरा हो ही नहीं सकता । उसकी बराबरी तो देव-कन्याएँ भी नहीं कर सकती"--स्वर्णकारों ने कहा।
राजा का मोह भड़का। स्वर्णकारों को बिदा करने के बाद राजा ने अपने दूत को बुला कर मल्लिकुमारी की याचना के लिए, मिथिला नरेश के पास भेजा।
(५) भगवती मल्लिकुमारी के एक छोटा भाई था, जिसका नाम “ मल्लिदिन्न" था। उसने एक चित्रशाला (रंगशाला-विलास-भवन) बनवाया। कलाकारों ने उसमें अनेक प्रकार के विलासजन्य सुन्दर चित्र बनाये। एक चित्रकार को चित्रकारी की लब्धि प्राप्त थी। उस लब्धि के प्रभाव से उसमें ऐसी शक्ति उत्पन्न हुई थी कि किसी के शरीर का जरासा भी हिस्सा देख लेता, तो वह उसके सारे शरीर का यथातथ्य चित्र बना सकता था। उसने एक बार मल्लिकुमारी का पाँव का अंगूठा पर्दे की जाली में से देख लिया था। उस पर से मल्लिकुमारी का पूरा रूप उसके ध्यान में आ गया। उसने सोचा कि ऐसी अपूर्व सुन्दरी का चित्र बनाने से राजकुमार बहुत प्रसन्न होंगे। इस प्रकार मिथ्या अनुमान लगा कर उसने राजकुमारी मल्लि का चित्र बना दिया। जब चित्रशाला पूर्ण रूप से तय्यार हो गई, तो मल्लिदिन्न युवराज, अपनी रानियों के साथ उसे देखने को आया । उसकी धात्रि'माता भी साथ ही थी। वह हावभाव और विलास पूर्ण चित्र देखता हुआ जब मल्लिकुमारी के चित्र के पास आया और उस पर उसकी दृष्टि पड़ी, तो एक बारगी वह पीछे हट गया। उसे आश्चर्य हुआ कि "पूज्य बहिन यहाँ क्यों आई ?" युवराज को विस्मयपूर्वक पीछे हटता हुआ देख कर धायमाता ने पूछा--'पुत्र ! पीछे क्यों हटे ?' युवराज ने कहा-- माता ! यह लज्जा की बात है कि मेरे देव और गुरु के समान पूज्या ज्येष्ठ भगिनी यहाँ उपस्थित है।' धात्रि ने कहा--'पुत्र! तुम भ्रम में हो, यहाँ मल्लिकुमारी नहीं है । यह तो उनका चित्र है ।' मल्लिदिन्नकुमार सावधान हुआ, उसे विश्वास हो गया कि वास्तव में यह चित्र ही है । अब वह चित्रकारों पर क्रुद्ध हुआ। उसने कहा-'ऐसा कौन नीच चित्रकार है, जिसने मेरे विलास-भवन में मेरी देव-गुरु तुल्य पूजनीय बहिन का चित्र बनाया।'उसने क्रोध में ही उस चित्रकार के वध की आज्ञा दे दी। युवराज की कठोर आज्ञा सुन कर सभी चित्रकार उपस्थित हुए और उस चित्रकार के प्राणों की याचना करने लगे । राजकुमार ने उसके वध के बदले उसका अंगूठा कटवा कर देश निकाला दे दिया । देश-निकाला पाया हुआ, वह अंगुष्ठ विहीन चित्रकार, कुरु जनपद के हस्तिनापुर नगर में आया और विदेह राजकुमारी मल्लि का साक्षात् सदृश चित्र बना कर वहाँ के 'अदीनशत्रु' राजा को भेंट
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