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दत्त वासुदेव चरित्र
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वह उसी समय हस्तिनापुर के लिए चल दिया। उसका श्वशुर मेघनाद भी साथ हो गया। वह हस्तिनापुर की दानशाला में आया । उसके आते ही थाल में रही हुई दाढ़ें गल कर क्षीर रूप में हो गई । सुभूम उस क्षीर को पी गया। यह देख कर वहाँ रहे हुए रक्षक ब्राह्मण युद्ध करने को तत्पर हो गए । मेघनाद ने उन सत्र को मार डाला । यह सुन कर परशुराम दौड़ा आया और सुभूम पर अपना फरसा फेंका । किंतु उसका निशाना चूक गया। परशुराम के पुण्य समाप्त हो गए थे और सुभूम के पुण्य का उदय हो रहा था। सुभूम ने वह क्षीर की खाली थाली परशुराम पर फैकी । थाली ने चक्र के समान परशुराम का सिर काट डाला। परशुराम के मरने पर सुभम राज्याधिपति हो गया। उसने इवकीस बार पृथ्वी को ब्राह्मण-विहीन कर डाली और छह खंड को साध कर चक्रवर्ती सम्राट हो गया। उसने मेघनाद को वैताढय पर्वत की दोनों श्रेणियों का राज्य दिया।
भोगगृद्ध और हिंसादि महारंभ तथा रोद्रध्यान की तीव्रता युवत अपनी साठ हजार वर्ष की आयु पूर्ण कर सुभम नाम का आठवाँ चक्रवर्ती सातवीं नरक में गया।
दत्त वासुदेव चरित्र
भगवान् श्री अरनाथ स्वामी के तीर्थ में 'दत्त' नाम का सातवा वासुदेव, नन्दन' बलदेव और प्रल्हाद' प्रतिवासुदेव हुआ।
जम्बूद्वीप के पूर्व-विदेह में सुसीमा नाम की नगरी थी। वसुंधर नाम के नरेश वहाँ के अधिपति थे। उन्होंने सुधर्म अनगार के समीप दीक्षा ली और चारित्र का पालन कर पांचवें देवलोक
जम्बूद्वीप के दक्षिण भरताद्धं में शीलपुर नगर था । मन्दरधीर राजा राज करते थे। उसके ललितमित्र नाम का गुणवान् ज्येष्ठ पुत्र था। राजा के खल नाम के मन्त्री ने बड़े राजकुमार की निन्दा कर के राजा को अप्रसन्न कर दिया और छोटे पुत्र को यवराज बना दिया। इससे अप्रसन्न हो कर ललितमित्र ने घोषसेन मुनिजी के पास दीक्षा ग्रहण कर ली । उग्र तप करते हुए उसने निदान कर लिया कि-" में आगामी भव में दुष्ट खल मन्त्री का वध करने वाला बनूं।" निदान-शल्य सहित काल कर के वह प्रथम देवलोक में ऋद्धि सम्पन्न देव हआ। खल मन्त्री चिरकाल तक संसार में परिभ्रमण करता था जम्बूद्वीप के वैताढय पर्वत की उत्तर श्रेणी के तिलकपुर नगर में विद्याधरों का अधिपति
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