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________________ तीर्थङ्कर चरित्र करने गए । भगवान् की धर्मदेशना सुन कर उनकी विरक्ति विशेष बलवती हुई । वे युवराज दृढ़रथ को शासन का भार सौंपने लगे, किन्तु वह भी संसार से विरक्त हो गया था । उसने भी उन के साथ ही प्रत्रजित होने की इच्छा व्यक्त की। छोटे राजकुमार मेघसेन को शासन का भार दिया और युवराज दृढ़रथ के पुत्र रथसेन को युवराज पद दिया। इसके बाद राजा मे बसेन ने, मेघरथ नरेश का निष्क्रमणोत्सव किया। श्री मेघरथजी के साथ उनके भाई दृहपथ, सात सौ पुत्र और चार हजार राजाओं ने भी निग्रंथ-प्रव्रज्या ग्रहण की। विशुद्ध संयम और उग्र तप करते हुए उन्होंने एक लाख पूर्व तक चारित्र का पालन किया तथा विशुद्ध भावों से आराधना करते हुए तीर्थंकर नामकर्म को निकाचित किया। वे अनशन युक्त आयु पूर्ण कर के सर्वार्थसिद्ध महाविमान में ३३ सागरोपम की स्थिति वाले देव हुए । मुनिराज श्री दृढ़रथजी भी वहीं उत्पन्न हुए। भगवान् शान्तिनाथ का जन्म इस जम्बूद्वीप के भरत-क्षेत्र में कुरुदेश में हस्तिनापुर नाम का नगर था। वह विशाल नगर उच्च भवनों और ध्वजा-पताकाओं से मुशोभित था । सुशोभित बाजारों, बाग-बगीचों, उद्यानों और स्वच्छ जलाशयों की शोभा से दर्शनीय था और धन-धान्य से परिपूर्ण था। उस नगर पर इक्ष्वाकु वंश के महाराजा · विश्वसेनजी' का राज्य था । वे प्रतापी, शूरवीर, न्यायप्रिय और राजाओं के अनेक गुणों से युका थे। उनके प्रखर तेज के आगे अन्य राजा और शक्तिमान ईर्षालु सामन्त दबे नहते और नत-मस्तक हो कर उनकी कृपा के इच्छुक रहते थे। उनके आश्रय में आये हुए लोग, निर्भय और सुखी रहते थे। महाराजा विश्श जी के 'अचिरादेवी' नाम की गनी थी। वह रूप लावण्य एवं सुलक्षणों से युक्त तो थी ही, साथ ही सदगुणों की खान भी थी। वह सती शीलवती अपने उच्च राजवंश को सुशोभित करती थी । महाराजा और महारानी में प्रगाढ़ प्रीति थी। उन दोनों का समय सुखपूर्वक व्यतीत हो रहा था। उस समय अनुत्तर विमानों में मुख्य ऐसे सर्वार्थसिद्ध महाविमान में मेघरथ जी का जीव अपनी तेतीस सागरोपम की सुखमय आयु पूर्ण कर चुका था। वह वहाँ से भाद्रपद कृष्णा सप्तमी को भरणी नक्षत्र में च्यव कर महारानी अचिरादेवी की कुक्षि में उत्पन्न हुआ। महारानी ने चौदह महास्वप्न देखे । महारानी ने स्वप्नों की बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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