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तीर्थकर चरित्र
विद्याधरगण । तुम भी भूचर मनुष्यों से भयभीत हो गए ? यदि युद्ध करने का साहस नहीं हो, तो युद्ध-मण्डल के सदस्य के समान तो डटे रहो । मैं स्वयं युद्ध करता हूँ । मुझे किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं है।"
अश्वग्रीव के उपालम्भ पूर्ण शब्दों ने विद्याधरों के हृदय में पुनः साहस का संचार किया। वे पुनः युद्ध-क्षेत्र में आ गये । अश्वग्रीव स्वयं रथ में बैठ कर, क्रूर ग्रह के समान शत्रुओं का ग्रास करने के लिए आकाश-मार्ग में चला और बाणों से, शस्त्रों से और अस्त्रों से त्रिपृष्ठ की सेना पर मेघ के समान वर्षा करने लगा। इस प्रकार अस्त्र-वर्षा से त्रिपृष्ठ की सेना घबड़ाने लगी। यदि भूमि-स्थित मनुष्य धीर, साहसी एवं निडर हो, तो भी आकाश से होते हुए प्रहार के आगे वह क्या कर सकता है ?
सेना पर अश्वग्रीव के होते हुए प्रहार को देख कर अचल, त्रिपृष्ठ और ज्वलनजटी, रथारूढ़ हो कर अपने-अपने विद्याधरों के साथ आकाश में उड़े । अब दोनों ओर के विद्याधर आकाश में ही विद्याशक्ति युक्त युद्ध करने लगे । इधर पृथ्वी पर भी दोनों ओर के सैनिक युद्ध करने लगे। थोड़ी ही देर में आकाश में लड़ते हुए विद्याधरों के रक्त से उत्पातकारी अपूर्व रक्त-वर्षा होने लगी। वीरों की हुँकार, शस्त्रों की झंकार और घायलों की चित्कार से आकाश-मंडल भयंकर हो गया। युद्ध-स्थल में रक्त का प्रवाह बहने लगा। रक्त और मांस, मिट्टी में मिल कर कीचड़ हो गया। घायल सैनिकों के तड़पते हुए शरीरों और गतप्राण हुए शरीरों को रौंदते हुए सैनिकगण युद्ध करने लगे।
इस प्रकार कल्पांत काल के समान चलते हुए युद्ध में त्रिपष्ठकुमार ने अपना रथ अश्वग्रीव की ओर बढ़ाया। उन्हें अश्वग्रीव की ओर जाते देख कर अचलकुमार ने भी अपना रथ उधर ही बढ़ाया। आने सामने दोनों शत्रुओं को देख कर अश्वग्रीव अत्यंत क्रोधित हो कर बोला;--
"तुम दोनों में से वह कौन है जिसने मेरे ‘चण्डसिंह' दूत पर हमला किया था ? पश्चिम दिशा के वन में रहे हुए केसरीसिंह को मारने वाला वह घमंडी कौन है ? किसने ज्वलनजटी की कन्या स्वयंप्रभा को पत्नी बना कर अपने लिये विषकन्या के समान अपनाई ? वह कौन मूर्ख है जो मुझे स्वामी नहीं मानता और मेरे योग्य कन्या-रत्न को दबाये बैठा है ? किस साहस एवं शक्ति के बल पर तुम मेरे सामने आये हो ? मैं उसे देखना चाहता हूँ फिर तुम चाहो, तो किसी एक के साथ अथवा दोनों के साथ युद्ध करूँगा । बोलो, मेरी बात का उत्तर दो।"
अश्वग्रोव की बात सुन कर त्रिपृष्ठकुमार हंसते हुए बोले:--
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