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तीर्थंकर चरित्र
ज्वलनजटी की बात दोनों वीरों ने स्वीकार की और दोनों भाई विद्या सिद्ध करने के लिए तत्पर हो गए। ज्वलनजटी स्वयं विद्या सिखाने लगा। सात रात्रि तक मन्त्र साधना चलती रही । परिणामस्वरूप ये विद्याएँ सिद्ध हो गई--
गारुडी, रोहिणी, भुवनक्षोभिनी, कृपाणस्तंभिनी, स्थामशुभनी, व्योमचारिणी, तमिस्रकारिणी, सिंह त्रासिनी, वेगाभिगामिनी, वैरीमोहिनी, दिव्यकामिनी, रंध्रवासिनी, कृशानुवसिणी, नागवासिनी, वारिशोषणी, धरित्रवारिणी,बन्धनमोचनी, विमुक्तकुंतला, नानारूपिणी, लोहशृंखला, कालराक्षसी, छत्रदशदिका, क्षणशूलिनी, चन्द्रमौली, रुक्षमालिनी, सिद्धताड़निका, पिंगनेत्रा, वनपेशला, ध्वनिता, अहिफणा, घोषिणी और भीरु भीषणा। इन नामों वाली सभी विद्याएँ सिद्ध हो गई । इन सब ने उपस्थित हो कर कहा--'हम आपके वश में है।'
। विद्या सिद्ध होने पर दोनों भाई ध्यान-मुक्त हए । इसके बाद सेना ले कर दोनों भाई प्रजापति और ज्वलनजटी के साथ शुभ मुहूर्त में प्रयाण किया और चलते-चलते अपने सीमान्त पर रहे हुए रथावर्त पर्वत के निकट आ कर पड़ाव डाला । युद्ध के शौर्यपूर्ण बाजे बजने लगे। भाट-चारणादि सुभटों का उत्साह बढ़ाने लगे। दोनों ओर की सेना आमनेसामने डट गई । युद्ध आरम्भ हो गया । बाण वर्षा इतनी अधिक और तीव्र होने लगी कि जिससे आकाश ही ढंक गया, जैसे पक्षियों का समूह सारे आकाश-मंडल पर छा गया हो। शस्त्रों की परस्पर की टक्कर से आग की चिनगारियाँ उड़ने लगी। सुभटों के शरीर कटकट कर पृथ्वी पर गिरने लगे। थोड़े ही काल के युद्ध में महाबाहु त्रिपृष्ठकुमार की सेना ने अश्वग्रीव की सेना के छक्के छुड़ा दिये। उसका अग्रभाग छिन्न-भिन्न हो गया। अपनी सेना की दुर्दशा देख कर अश्वग्रीव के पक्ष के विद्याधर कुपित हुए। उन्होंने प्रचण्ड रूप धारण किये । कई विकराल राक्षस जैसे दिखाई देने लगे, तो कई केसरी-सिंह जैसे, कई मदमस्त गजराज, कई पशुराज अष्टापद, बहुत-से चिते, सिंह, वृषभ आदि रूप में त्रिपृष्ठ की सेना पर भयंकर आक्रमण करने लगे। इस अचिन्त्य एवं आकस्मिक पाशविक आक्रमण को देख कर त्रिपृष्ठ की सेना स्तंभित रह गई । सैनिक सोचने लगे कि--'यह क्या है ? हमारे सामने राक्षसों और विकराल सिंहों की सेना कहाँ से आ गई ? ये तो मनुष्य को फाड़ ही डालेंगे । पर्वत के समान हाथी, अपनी सूंडों में पकड़-पकड़ कर मनुष्यों को चीर डालेंगे । उनके पैरों के नीचे सैकड़ों-हजारों मनुष्यों का कच्चर घाण निकल जायगा, अहा! एक स्त्री के लिए इतना नरसंहार ।"
सेना के मनोभाव जान कर ज्वलन जटी आगे आया और उसने त्रिपृष्ठकुमार से
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