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________________ २१८ तीर्थंकर चरित्र क्या कर बैठो और उसका क्या परिणाम निकले ? अतएव तुम यहीं रहो और शांति से रहो। मैं स्वयं सिंह से भिड़ने जाता हूँ ।" " पिताजी ! अश्वग्रीव मूर्ख है । वह बच्चों को भूत से डराने के समान हमें सिंह से डराता है । आप प्रसन्नतापूर्वक आज्ञा दीजिए। हम शीघ्र ही सिंह को मार कर आपके चरणों में उपस्थित होंगे ।" बड़ी कठिनाई से पिता की आज्ञा प्राप्त कर के अचल और त्रिपृष्ठ कुमार थोड़े से सेवकों के साथ उपद्रव ग्रस्त क्षेत्र में आये। उन्हें वहाँ सैनिकों की अस्थियों के ढेर के ढेर देख कर आश्चर्य हुआ। ये सब बिचारे सिंह की विकरालता की भेंट चढ़ चुके थे । सिंह-घात कुमारों ने इधर-उधर देखा, तो उन्हें कोई भी मनुष्य दिखाई नहीं दिया । जब उन्होंने वृक्षों पर देखा, तो उन्हें कहीं-कहीं कोई मनुष्य दिखाई दिया । उन्होंने उन्हें निकट बुला कर पूछा " यहाँ रक्षा करने के लिए आये हुए राजा लोग, किस प्रकार सिंह से इस क्षेत्र की रक्षा करते हैं ? " —“वे अपने हाथी, घोड़े, रथ और सुभटों का व्यूह बनाते हैं और अपने को व्यूह में सुरक्षित कर लेते हैं । जब विकराल सिंह आता है, तो वह व्यूह के सैनिक आदि को मार कर फाड़ डालता है और खा कर लौट जाता है । इस प्रकार उस विकराल सिंह से राजाओं की और हमारी रक्षा तो हो जाती है, किन्तु संनिक और घोड़े आदि मारे जाते हैं । हम कृषक हैं । वृक्षों पर चढ़ कर यह सब देखते रहते हैं' -- उनमें से एक बोला । दोनों कुमार यह सुन कर प्रसन्न हुए । उन्होंने अपनी सेना को तो वहीं रहने दिया और दोनों भाई रथ पर सवार हो कर सिंह की गुफा की ओर चले । रथ के चलने से उत्पन्न ध्वनि से बन गुँज उठा । यह अश्रुतपूर्व ध्वनि सुन कर सिंह चौंका । वह अपनी तीक्ष्ण दृष्टि से इधर-उधर देखने लगा । उसकी गर्दन तन गई और केशाबलि के बाल चँवर के समान इधर-उधर हो गए। उसने उबासी लेने के मृत्यु के मुँह के समान भयंकर था । उसने इधर-उधर देखा हुआ पुनः लेट गया । सिंह की उपेक्षा देख कर अचलकुमार लिए मुँह खोला । वह मुँह और रथ की उपेक्षा करता ने कहा; Jain Education International For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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