SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तीर्थंकर चरित्र भ० ऋषभदेवजी आदिमं पृथिवीनाथ-मादिमं निष्परिग्रहिम् । आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभस्वामिनं स्तुमः ॥१॥ पूर्वभव-धन्य सार्थवाह जम्बूद्वीप के पश्चिम महाविदेह में क्षितिप्रतिष्ठित' नामक नगर था। 'प्रसन्नचन्द्र' नाम का राजा राज्य करता था। वहाँ अतुल सम्पत्ति का स्वामी 'धन्य' नामक सार्थवाह (व्यापारियों का नेता) रहता था। वह उदारता, गांभीर्य, धैर्य और सदाचारादि गुणों से सुशोभित था । वह नगरजनों में विश्वास योग्य, आधारभूत और सर्व सहायक तथा रक्षक था। उसके आधीन रहने वाले सेवक भी धन्य-धान्यादि से युक्त एवं सुखी थे। एक बार धन्य सेठ ने व्यापार के लिये दूरस्थ वसंतपुर जाने का निश्चय किया। उसने नगर में उद्घोषणा करवाई कि--- " धन्य-श्रेष्ठी व्यापारार्थ वसंतपुर जाएँगे। इसलिए जो भाई उनके साथ चलना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy