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________________ ९८ हो गए और निष्कंप-- अडोल खड़े रहे । ग्रीष्म का प्रचंड ताप भी उनको चलित नहीं कर सका। देह से पसीना झरता और रज- कण उड़ कर उनके देह पर चिपक जाते । इस प्रकार सारा शरीर रज- मैल से लिप्त हो कर कीचड़ जम गया । किंतु ध्यानस्थ मुनिराज की इस ओर दृष्टि ही नहीं गई । घनघोर वर्षा और पृथ्वी पर बहते हुए पानी से उनके देह पर शैवाल जम गई । देह को कंपा देने वाले झंझावात आये, परन्तु योगीराज का स्थिर-योग निश्चल रहा । वन उपवन को अपने शीत- दाह से दग्ध करने वाली अत्यन्त शीत और साथ ही हिम-वर्षा के भयंकर उपसर्ग भी महान् आत्मबली महामुनि बाहुबली नहीं डिगा सके । जिस प्रकार वे युद्ध में अजेय रहे, उसी प्रकार प्रकृति के महा प्रकोप के घोर कष्टों के सामने भी अपराजेय रहे और धर्मध्यान में विशेष स्थिर रहने लगे। उनकी ध्यान-धारा विशेष विकसित होती रही । जंगली भैंसे उन्हें वृक्ष का सूखा ठूंठ समझ कर अपना सिर, स्कन्ध और शरीर रगड़ कर खुजालने लगे। सिंह उनके पैरों का सहारा ले कर विश्राम करते । हाथी उनके हाथ पाँव को सूंड से पकड़ कर खिंचने का उपक्रम करते, किंतु निष्फल हो कर लौट जाते । चमरी गायें अपनी काँटे के समान तीक्ष्ण-- खुरदरी जीभ से उनके शरीर को चाटती थी । वर्ग के बाद उगी हुई बेलें उनके शरीर पर लिपट कर छा गई थी । बाँस और तीक्ष्ण दर्भ के अंकुर उनके पाँव फोंड कर ऊपर निकल आये थे । उनके शरीर पर लिपटी हुई लताओं के झुरमुट में चिड़ियें अपने घोंसले बना कर रहने लगी थी और मयूर के कोकारव से भयभीत सर्प उस लता में छुपने के लिए उनके शरीर पर चढ़ते और पैरों में लिपट जाते । योगीराज को बहिनों द्वारा उद्बोधन इस प्रकार की कठोर साधना करते हुए महामुनि बाहुबलीजी को एक वर्ष बीत गया । उनका मोह महाशत्रु जीर्ण-शीर्ण हो गया था, फिर भी वह मान के महाश्रय से टिका हुआ था | स्थिति परिपक्व होने आई थी, कि इस मान- महिपाल को नष्ट करने में एक महा निमित्त की आवश्यकता थी । सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान् आदि जिनेश्वर ने महासती ब्राह्मी और सुन्दरी को सम्बोध कर कहा तीर्थंकर चरित्र -- Jain Education International आयें ! महामुनि बाहुबलीजी कठोर साधना कर र हैं । एक वर्ष की साधना M For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001915
Book TitleTirthankar Charitra Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1976
Total Pages426
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size8 MB
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