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________________ पंचसंग्रह : १० वरण, संज्वलन दोनों प्रकार के क्रोधों का उदय होता है। इसी प्रकार अन्यत्र एवं मान, माया और लोभ के लिये भी समझना चाहिये । तीन वेद में से एक वेद, हास्य-रति युगल या शोक-अरति युगल में से एक युगल इन सात प्रकृतियों का मिथ्यादृष्टि जीव को अवश्य उदय होता है। इस सात-प्रकृतिक उदयस्थान में प्रकृतियों के फेरफार से चौबीस भंग होते हैं । जो इस प्रकार से जानना चाहिये किसी जीव को हास्य-रति का या किसी जीव को शोक-अरति का उदय होने से प्रत्येक युगल का एक-एक भंग होता है, जिससे दो युगल के दो भंग हुए। इन दोनों युगल के उदय वाले जीव तीन वेदों में से भी किसी एक वेद के उदय वाले होने से उन दो को तीन वेद से गुणा करने पर छह भंग हुए। ये छह भंग वाले जीव क्रोधादि चार में से किसी भी कषाय के उदय वाले होते हैं। अतएव छह को चार से गुणा करने पर चौबीस भंग होते हैं। इस प्रकार युगल, वेद और क्रोधादि-क्रोध, मान, माया, लोभ कषाय को बदलने से चौबीस भंग होते हैं। उक्त सात के उदयस्थान में भय, जुगुप्सा या अनन्तानुबंधि के उदय में से किसी एक के मिलाने पर आठ-प्रकृतिक उदयस्थान होता है और उस प्रत्येक उदय की एक-एक चौबीसी होती है । अर्थात् प्रत्येक उदय में सात के उदय की तरह युगल, वेद और क्रोधादि चार की अदला-बदली करने से चौबीस-चौबीस भंग होते हैं। इस प्रकार आठ-प्रकृतिक उदयस्थान में तीन चौबीसी होती हैं। ___ कदाचित यह कहा जाये कि मिथ्यादृष्टि को तो अनन्तानुबंधि का उदय अवश्य संभव है तो फिर सात का उदय और भय या जुगुप्सा सहित आठ का उदय अनन्तानुबंधि रहित कैसे होता है ? इसका उत्तर यह है कि किसी क्षायोपशमिक सम्यग्दृष्टि जीव ने अनन्तानुबंधि आदि दर्शनमोहनीयसप्तक का क्षय करने के पूर्व मात्र अनन्तानुबंधिकषाय की विसंयोजना की और इतना करके ही वह रुक गया, मिथ्यात्व Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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