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________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ३ उक्त प्रकार से किस कर्म के बंध के साथ कितने कर्म के बंध होने का निर्देश करने के पश्चात् अब किस कर्म के उदय के साथ कितने कर्म का उदय एवं सत्ता होने का कथन करते हैं। उदयसत्तासंवेध मोहस्सुदए अट्ठवि सत्तय लब्भन्ति सेसयाणुदए। सन्तोइण्णाणि अघाइयाणं अड सत्त चउरो य ॥३॥ शब्दार्थ-मोहस्सुदय-मोहनीय का उदय हो, अवि-आठ भी, सत्त -सात, य-और, लब्भन्ति --होते हैं, सेसयाणुदए-शेष प्रकृतियों के उदय में, सन्तोइण्णाणि-सत्ता और उदय, अघाइयाणं-अघाति कर्मों के, अड सत्त चउरो-आठ, सात, चार, य- और । ___ गाथार्थ-मोहनीय का उदय हो तब आठ कर्म उदय और सत्ता में होते हैं। शेष (तीन घाति) कर्म के उदय में आठ और सात तथा अघातिकर्मों का उदय होने पर आठ, सात या चार कर्म उदय और सत्ता में होते हैं। विशेषार्थ-मूल कर्मप्रकृतियों में से किस प्रकृति के उदय रहते कितने मूलकर्म उदय एवं सत्ता में सम्भव हैं ? इसका गाथा में संकेत किया है। विशेषता के साथ जिसका स्पष्टीकरण करने के पूर्व उनके उदयस्थानों एवं सत्तास्थानों का निर्देश करते हैं। उदयस्थान-मूल प्रकृतियों की अपेक्षा आठप्रकृतिक, सातप्रकृतिक एवं चारप्रकृतिक इस प्रकार तीन उदयस्थान होते हैं। आठप्रकृतिक उदयस्थान में ज्ञानावरणादि सब मूल प्रकृतियों का, सातप्रकृतिक में मोहनीय के बिना शेष सात का और चारप्रकृतिक उदयस्थान में चार अघातिकर्मों का ग्रहण होता है। सत्त्वस्थान-उदयस्थान की तरह मूलकर्म प्रकृतियों के आठप्रकृतिक, सातप्रकृतिक और चकतिक ये तीन सत्त्वस्थान होते हैं। आठप्रकृतिक सत्त्वस्थान में सब कर्मों की, सातप्रकृतिक सत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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