________________
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
परिशिष्ट २ :
स्थान
२२ प्र.
२१ प्र.
१७ प्र.
१३ प्र.
& ST.
स्थानगत प्रकृतियां
X
मि., १६ क. १वे, २यु. भ. जु.
11
X १२क.,,
X दक.
77
X ४क. "
""
"
"1
ܙܕ
11
"
मोहनीय कर्म के बंधस्थानों का प्रारूप
"1
11
"
""
11
गुणस्थान
पहला
दूसरा
तीसरा चौथा
गुणस्थान
पांचवां
६, ७, ८ गुणस्थान
बंध प्रकार
६ प्रवार २ युगल और वेदत्रिक के गुणाकार से
४ प्रकार २ वेद
X यु० २
२ प्रकार ( युगल द्वारा)
२ प्रकार
( युगल द्वारा )
१ प्रकार
छठे गुणस्थान २ प्रकार
काल प्रमाण
जयन्य
अन्तर्मुहूर्त देशोनार्ध पुद्गल परावर्तन
एक समय
उत्कृष्ट
""
अन्तर्मुहूर्त साधिक ३३ सागर
""
६ आवलिका
देशोन पूर्व कोटि वर्ष
"
सप्ततिका प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट २
३५६.