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________________ २९६ لله ( ३३ ) प्रमत्तसंयत गुणस्थान में नामकर्म के बंधादि स्थानों का विवेचन २६० अप्रमत्तसंयत गुणस्थान में नामकर्म के बंधादि स्थानों का विवेचन २६२ अपूर्वकरण गुणस्थान में नामकर्म के बंधादि स्थानों का विवेचन २६३ अनिवृत्तिबादरसंपराय गुणस्थान में नामकर्म के बंधादि स्थानों का विवेचन २६५ सुक्ष्मसंपराय, उपशांतमोह आदि गुणस्थानों में नामकर्म के बंधादि स्थान नरकगति में नामकर्म के बंधादि स्थान २६६ तियं च गति में नामकर्म के बंधादि स्थान मनुष्यगति में नामकर्म के बंधादि स्थान ३०३ देवगति में नामकर्म के बंधादि स्थान गाथा १३० ३०८-३१० इन्द्रिय मार्गणा के भेदों में नामकर्म के बंधादि स्थान ३०८ गाथा १३१ ३१०-३११ जी वस्थानों में ज्ञानावरण, दर्शनावरण, अन्तराय कर्म के बंधादि स्थान ३१० गाथा १३२ ३११-३१२ जीव भेदों में वेदनीय और गोत्रकर्म के बंधादि स्थान ३११ गाथा १३३, १३४ ३१२-३१४ जीवस्थानों में आयुकर्म के बंधादि स्थान ३१३ गाथा १३५, १३६ ३१४--३१७ जी वस्थानों में मोहनीयकम के बंधादि स्थान ३१६ س له Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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