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सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १३७,१३८,१३६ संज्ञी मनुष्य हैं, वैसे तिर्यंच भी हैं। जिससे प्रत्येक के दो-दो भंगों का ग्रहण करने पर चार भंग होते हैं ।1
पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्दियों को चार उदयस्थान होते हैं। जो इस प्रकार जानना चाहिए-इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बोस प्रकृतिक । इनमें से इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान इस प्रकार है-तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, वर्णचतुष्क, निर्माण, तिर्यंचद्विक, एकेन्द्रियजाति, स्थावर, सूक्ष्म, पर्याप्त, दुर्भग, अनादेय
और अयश:कीर्ति। इन इक्कीस प्रकृतियों का उदय विग्रहगति में वर्तमान सूक्ष्म, पर्याप्त, एकेन्द्रिय को होता है। यहाँ प्रतिपक्षी किसी भी प्रकृति का उदय नहीं होने से एक ही भंग होता है। __इस इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान में औदारिक शरीर, उपघात, हुण्डसंस्थान और प्रत्येक या साधारण में से एक इन चार प्रकृतियों को मिलाने और तिर्यंचानुपूर्वी को कम करने पर शरीरस्थ सूक्ष्म एकेन्द्रिय को चौबीस प्रकृतियों का उदय होता है। प्रत्येक और साधारण के साथ परावर्तन करने से एक चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान दो प्रकार से होता है।
तत्पश्चात् शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त को पराधातनाम को मिलाने पर पच्चीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इस उदयस्थान के भी पूर्वोक्त प्रकार से दो भंग होते हैं। - इसके बाद श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति से पर्याप्त को उच्छ्वास नाम को मिलाने पर छब्बीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी पूर्व कथनानुसार वही दो भंग होते हैं ।
- सूक्ष्म पर्याप्त के चार उदयस्थान सम्बन्धी कुल मिलाकर सात भंग होते हैं।
१ इसी प्रकार अपर्याप्त असंज्ञी भी चार भग हो सकते हैं। क्योंकि जैसे
अपर्याप्त असंज्ञी तियं च हैं, वैसे ही अपर्याप्त असंज्ञो मनुष्य भी हैं ।
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