SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 350
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सप्ततिका-प्ररूपणा अधिकार : गाथा १२६ ३०७ सर्व बंधस्थानों और उदयस्थानों की अपेक्षा सत्तास्थान एक सौ उनसठ होते हैं और बंधविच्छेद होने के बाद उदय और सत्तास्थानों का परस्पर संवेध जिस प्रकार सामान्य संवेध का विचार किया है, तदनुरूप समझना चाहिये। इस प्रकार मनुष्यगति संबन्धी नामकर्म के बंध आदि स्थानों को जानना चाहिये। अब देवगति संबन्धी बंध, उदय और सत्तास्थानों का विचार करते हैं। देवगति-देवों में यह चार बंधस्थान होते हैं-पच्चीस, छब्बीस उनतीस और तीस प्रकृतिक । इनमें से पच्चीस और छब्बीस प्रकृतिक ये दो बंधस्थान पर्याप्त बादर पृथ्वी, अप् और प्रत्येक वनस्पति योग्य बंध करने पर होते हैं । यहां स्थिर-अस्थिर, शुभ-अशुभ और यशःकीति-अयशःकीर्ति के परावर्तन द्वारा आठ भंग होते हैं। छब्बीस प्रकृतियों का बंध आतप या उद्योत सहित होता है। यहाँ सोलह भंग होते हैं । मनुष्य और तिर्यंच गति योग्य बंध करने पर उनतीस प्रेकृतियों का बंध सप्रभेद पूर्व की तरह समझना चाहिये । उद्योतनाम युक्त तिर्यंचगतियोग्य बंध करने पर तीस प्रकृतियों का बंध होता है । उसके छियालीस सौ आठ भंग होते हैं । तीस प्रकृतियों का बंध तीर्थकरनाम युक्त मनुष्यगतियोग्य होता है। उसके स्थिर-अस्थिर, शुभअशुभ, यशःकीर्ति-अयशःकीति के परावर्तन द्वारा आठ भंग होते हैं । उदयस्थान छह हैं। वे इस प्रकार हैं-इक्कीस, पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस प्रकृतिक । इनका विस्तारपूर्वक कथन पूर्व में किया जा चुका है। तदनुसार यहाँ समझ लेना चाहिये। सत्तास्थान चार हैं-तेरानवै, बानवै, नवासी और अठासी प्रकृतिक । अन्य सत्तास्थान संभव नहीं हैं। क्योंकि उक्त चार के अतिरिक्त कितने ही एकेन्द्रियसंबन्धी और कितने ही क्षपकसंबन्धी होते हैं । जिससे वे देवों के संभव नहीं हैं। अब संवेध का कथन करते हैं-एकेन्द्रिययोग्य पच्चीस प्रकृतियों For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy