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________________ २४६ पंचसंग्रह : १० असंभवी उदयभंग और पदों को कम करना चाहिये। अतएव अब असंभवी उदयभंगों और पदों की संख्या प्राप्त करने का उपाय बताते हैं। असम्भवी उदयभंगों व पदों को प्राप्त करने का उपाय अपमत्तसासणेसु अड सोल पमत्त सम्म बत्तीसा। मिच्छंमि य छण्णउई ठावेज्जा सोहणनिमित्तं ॥१२६॥ जोगतिगेणं मिच्छे नियनियचउवीसगाहिं सेसाणं । गुणिऊणं पिडेज्जा सेसा उदयाण परिसंखा ॥१२७॥ शब्दार्थ-अपमत्तसासणेसु-अप्रमत्त और सासादन में, अड-आठ, सोल-सोलह, पमत्त-प्रमत्त में, सम्म–अविरतसम्यग्दृष्टि में, बत्तीसाबत्तीस, मिच्छंमि-मिथ्यात्व में, य-और, छण्ण ई-छियानवे, ठावेज्जास्थापित करना चाहिये, सोहणनिमिसं--कम करने के लिये । जोगतिगेणं-योगत्रिक से, मिग्छे-मिथ्या दृष्टिगुणस्थान के, नियनियचरवीसगाहि-अपनी-अपनी चौबीसी की संख्या द्वारा, सेसाणं-शेष गुणस्थानों के, गणिऊणं-गुणा करके, पिंडेज्जा-जोड़ करें, सेसा-कम करने से, उदयाण-उदयभंगों की, परिसंखा-पूर्ण संख्या । गाथार्थ-अप्रमत्त और सासादन गुणस्थान में आठ, प्रमत्तसंयत गुणस्थान में सोलह, अविरतसम्यग्दृष्टि में बत्तीस और मिथ्यात्व में छियानवै कम करने के लिये स्थापित करना चाहिये। मिथ्यादृष्टि के स्थापने योग्य अंकों को योगत्रिक से और शेष गुणस्थानों के स्थापने योग्य अंकों को उस-उस गुणस्थान की चौबीसी की संख्या से गुणा करना चाहिये तथा गुणा करके उनका जोड़ करके उसे कुल संख्या में से कम करने पर उदयभंगों की कुल संख्या प्राप्त होती है । विशेषार्थ-'अपमत्तसासणेसु अड' अर्थात् अप्रमत्तसंयत और सासादन सम्यग्दृष्टि गुणस्थान सम्बन्धो कम करने के लिये आठ-आठ तथा प्रमत्तगुणस्थान सम्बन्धी सोलह-'सोल पमत्त' एवं अविरत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001907
Book TitlePanchsangraha Part 10
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages572
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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