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पंचसंग्रह : १०
आठ और नौ प्रकृतिक ये दो उदयस्थान अयोगिकेवली गुणस्थान में होते हैं तथा बीस प्रकृतिक उदयस्थान मात्र केवलि समुद्घात अवस्था में ही होता है और इक्कीस प्रकृतिक उदयस्थान भवांतर में जाते सभी जीवों के होता है ।
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विशेषार्थ - इन तीन गाथाओं में नामकर्म के बारह उदयस्थानों को गुणस्थानों में घटित किया है कि प्रत्येक गुणस्थान में कितने और कितनी प्रकृतियों वाले उदयस्थान होते हैं। जिनका विवरण इस प्रकार है
'मिच्छे इगवीसाई' अर्थात् मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में इक्कीस प्रकृतिक आदि नौ उदयस्थान होते हैं, यानि इक्कीस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताईस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस और इकत्तीस प्रकृतिक ये नौ उदयस्थान मिथ्यात्वगुणस्थान में होते हैं । क्योंकि मिथ्यादृष्टिगुणस्थान एकेन्द्रियादि चारों गति के जीवों में होने से, उक्त सभी नौ उदयस्थान संभव हैं । इनके अतिरिक्त बीस, नौ और आठ प्रकृतिक ये तीन उदयस्थान न होने का कारण यह है कि बीस प्रकृतिक उदयस्थान केवलि समुद्घात अवस्था में और नौ एवं आठ प्रकृतिक ये दो उदयस्थान चौदहवें अयोगिकेवली गुणस्थान में होते हैं । इसी कारण इन तीन उदयस्थानों का मिथ्यादृष्टिगुणस्थान में निषेध किया है ।
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सासादनगुणस्थान में 'सगट्ठवीसा हीणा' सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिक के बिना शेष मिथ्यात्वगुणस्थान में बताये गये उदयस्थान होते हैं । इसका आशय यह है कि पहले जो मिथ्यात्वगुणस्थान में इक्कीस से लेकर इकत्तीस प्रकृतिक तक नौ उदयस्थान बतलाये हैं उनमें से सत्ताईस और अट्ठाईस प्रकृतिक इन दो उदयस्थानों को कम कर देने पर शेष सात उदयस्थान सासादन गुणस्थान में होते हैं और इन सात उदयस्थानों को मानने में हेतु इस प्रकार है
इक्कीस प्रकृतिक उदय एक भव से भवान्तर में जाते होता है, चौबीस प्रकृतिक उदय पर्याप्त प्रत्येक बादर एकेन्द्रिय को जन्म - उत्पत्ति के प्रथम समय में होता है, छब्बीस प्रकृतिक उदय द्वीन्द्रियादि को
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