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________________ ६ उपशमनादि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार ( उपशमना - निधत्ति निकाचना करण ) उदीरणाकरण का विस्तार से विवेचन करने के पश्चात् अब उपशमनादि तीन करणों का अनुक्रम से प्रतिपादन करते हैं । उपशमनाकरण का आद्य गाथा सूत्र इस प्रकार है देसुवसमणा सव्वाण होइ सव्वोवसामणा मोहे । अपसत्था पसत्था जा करणुवसमणाए अहिगारो ॥१॥ शब्दार्थ - - देसुवसमणा-देशोपशमना, सव्वाण - सबकी, होइ - होती है, सव्वोवसामणा -- सर्वोपशमना, मोहे – मोहनीय कर्म की, अपसत्थाजा-- - जिनके, करणुवसमणाए— करणोपशमना का, - अप्रशस्त, पसत्था - प्रशस्त, अहारी-अधिकार । गाथार्थ - देशोपशमना सब आठों कर्मों की और सर्वोपशमना मात्र मोहनीय कर्म की होती है। जिनके अनुक्रम से अप्रशस्त और प्रशस्त ये अपरनाम हैं । यहाँ करणोपशमना के विचार का अधिकार है । - विशेषार्थ - गाथा में उपशमना की रूपरेखा प्रस्तुत की है किउपशमना के दो प्रकार हैं- १ देशोपशमना २ सर्वोपशमना । उनमें से देशोपशमना समस्त यानी आठों कर्म प्रकृतियों की होती है, किन्तु सर्वोपशमना मात्र मोहनीय कर्म की होती है । देशोपशमना के देशोपशमना, अनुदयोपशमना, अगुणोपशमना और अप्रशस्तोपशमना तथा सर्वोपशमना के सर्वोपशमना, उदयोपशमना, गुणोपशमना और प्रशस्तोपशमना ये पर्यायवाची नाम हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001906
Book TitlePanchsangraha Part 09
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages224
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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