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पंचसंग्रह : ६ दलिकों को बंधती स्वजातीय पर प्रकृति में डालता है। जैसे दूसरी और तीसरी कषाय के दलिकों को पर प्रकृति में प्रक्षिप्त करता है। तथा
जिस समय अन्तरकरण क्रिया प्रारंभ होती है, उसके बाद के समय से निम्नलिखित सात पदार्थ एक साथ प्रारंभ होते हैं
१. जिस समय अन्तरकरणक्रिया शुरू हुई, उसके बाद के समय से मोहनीय कर्म का रसबंध एकस्थानक होता है।
२-३. मोहनीयकर्म की उदीरणा संख्यात वर्ष की ही होती है। क्योंकि उस समय संख्यातवर्ष से अधिक स्थिति सत्ता में नहीं होती है तथा गाथागत उदीरणा के बाद का 'य' शब्द अनुक्त का समुच्चायक होने से यह आशय समझना चाहिये कि मोहनीय का जो स्थितिबंध होता है, वह संख्यात वर्ष का होता है और वह भी पूर्व-पूर्व से संख्यातगुणहीन होता है। - ४. पुरुषवेद और संज्वलनचतुष्क का क्रमपूर्वक ही संक्रम होता है, अर्थात् जिस-जिस प्रकृति का पहले बंधविच्छेद होता है उसके दलिक उत्तर-उत्तर में बंधविच्छेद होने वाली प्रकृतियों में जाते हैं, परन्तु बाद में बंधविच्छेद होने वाली प्रकृतियों के दलिक पूर्व में बंधविच्छेद होने वाली प्रकृति में नहीं जाते हैं। जैसे कि पुरुषवेद के दलिक क्रोधादि में जाते हैं, क्रोध के मान आदि में जाते हैं परन्तु क्रोधादि के पुरुषवेद में या मानादिक के क्रोध में नहीं जाते हैं। अन्तरकरण से पहले तो परस्पर संक्रम होता था।
५. अन्तरकरण के बाद संज्वलन लोभ का अन्य किसी प्रकृति में संक्रमण नहीं होता है।
६. अभी तक बंधे हुए कर्म की बंधावलिका बीतने के बाद उदीरणा होती थी, किन्तु अन्तरकरणक्रिया की शुरुआत के द्वितीय समय से जो कर्म बंधता है, वह छह आवलिका के बाद उदीरणा को प्राप्त होता है।
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