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संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २३
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गाथार्थ-बाईस, इक्कीस, पन्द्रह और ग्यारह प्रकृतिरूप पतद्ग्रहस्थान में छब्बीस और सत्ताईस प्रकृतियां मिथ्यादृष्टि और अविरतसम्यग्दृष्टि आदि के संक्रमित होती हैं।
विशेषार्थ-मिथ्यादृष्टि तथा अविरतादि-अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत और सर्वविरत गुणस्थान वालों के अनुक्रम से बाईस, उन्नीस, पन्द्रह और ग्यारह प्रकृतिक पतद्ग्रहस्थान में छब्बीस और सत्ताईस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं। उनमें से मिथ्यादृष्टि के बाईस में, अविरतसम्यग्दृष्टि के उन्नीस में, देशविरत के पन्द्रह में और सर्वत्रिरतप्रमत्त-अप्रमत्त के ग्यारह में छब्बीस और सत्ताईस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं।
उसमें पहले गुणस्थान में सम्यक्त्वमोहनीय की उद्वलना होने के बाद छब्बीस प्रकृतियां बाईस में संक्रमित होती हैं और अविरत आदि के उपशमसम्यक्त्व प्राप्त होने के बाद आवलिका के अंदर छब्बीस तथा आवलिका के बाद सत्ताईस प्रकृतियां उन्नीस आदि पतद्ग्रहस्थान में संक्रमित होती हैं । तथा
बाबीसे गुणवीसे पन्नारसेक्कारसे य सत्ते य । ... तेवीसा संकमइ मिच्छाविरयाइयाण कमा ॥२३॥
शब्दार्थ-बावीसे—बाईस में, गुणवीसे-उन्नीस में, पन्नरसेक्कारसेपन्द्रह औ र ग्यारह में, य-तथा, सत्ते--सात में, य--और, तेवीसा--तेईस, संकमइ-संक्रमित होती हैं, मिच्छाविरयाइयाण---मिथ्यादृष्टि और अविरत आदि के, कमा--अनुक्रम से।
गाथार्थ-मिथ्यादृष्टि और अविरत आदि के अनुक्रम से बाईस, उन्नीस, पन्द्रह, ग्यारह और सात के पतद्ग्रहस्थान में तेईस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं।
विशेषार्थ-मिथ्यादृष्टि और अविरति आदि-अविरत, देश विरत, संयत और अनिवृत्तिबादरसंपरायगुणस्थानवी जीवों के अनुक्रम से बाईस, उन्नीस, पन्द्रह, ग्यारह और सात प्रकृतिक पतद्ग्रह में तेईस
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