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________________ संक्रम आदि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : गाथा २० प्रकृतियां माया और लोभ इन दो में और उपशमश्रेणि में सम्यक्त्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय इन दो में मिथ्यात्वमोहनीय और मिश्रमोहनीय ये दो प्रकृतियां संक्रमित होती हैं। एक प्रकृतिरूप पतदग्रह में एक, दो, तीन और पांच प्रकृतियां संक्रमित होती हैं। उनमें संज्वलन मान उपशांत होने के बाद माया पतद्ग्रहरूप नहीं रहती है जिससे एक लोभ में पांच प्रकृतियां क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्रेणि में संक्रमित होती हैं । उसी के अप्रत्याख्यानावरण-प्रत्याख्यानावरण माया के उपशमित होने के बाद तीन और संज्वलन माया के उपशमित होने के बाद दो लोभ रूप दो प्रकृतियां संज्वलन लोभ में संक्रमित होती हैं तथा क्षपकश्रेणि में मान का क्षय होने के बाद एक संज्वलन माया का लोभ में संक्रम होता है ।। अब पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थानों का विचार करते हैं। पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थानों का विचार निम्नलिखित प्रकारों से किया जायेगा १-मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों में तथा औपशमिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्रेणि में पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थान । २–क्षपकश्रेणि के पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थान । ३–क्षायिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्रेणि में पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थान । इनमें से पहले मिथ्यादृष्टि आदि गुणस्थानों और औपशमिक सम्यग्दृष्टि के उपशमश्रेणि में पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थानों का विचार करते हैं। पतद्ग्रहस्थानों में संक्रमस्थान १. सुगमता से समझने के लिये संक्रमस्थानों में पतद्ग्रहस्थानों का प्रारूप परिशिष्ट में देखिये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001904
Book TitlePanchsangraha Part 07
Original Sutra AuthorChandrashi Mahattar
AuthorDevkumar Jain Shastri
PublisherRaghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
Publication Year1985
Total Pages398
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size18 MB
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