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पंचसंग्रह : ७ ही नहीं है। इसलिये उन दोनों को अलग करने पर शेष छब्बीस प्रकृतियों का ही संक्रम होता है।
चौबोस की सत्ता वाला सम्यग्दृष्टि जीव सम्यक्त्व से पतन कर मिथ्यात्व में जाने पर भी और वहाँ पुनः अनन्तानुबंधिकषाय का बंध करता है, लेकिन सत्ताप्राप्त उस कषाय को संक्रमित नहीं करता है। इसका कारण यह है कि सम्यक्त्व से पतित हुआ अनन्तानुबंधि का विसंयोजक जीव अनन्तानुबंधि का बंध पुनः प्रारंभ करता है, परन्तु जिस समय बंध करता है, उस समय से लेकर एक आवलिका पर्यन्त उसमें कोई भी करण लागू न पड़ने से मिथ्यात्वगुणस्थान में बंधावलिका पर्यन्त अनन्तानुबंधि का संक्रम नहीं होता है और मिथ्यात्वमोहनीय मिश्रमोहनीय और सम्यक्त्वमोहनीय की पतद्ग्रह है, इसलिये अनन्तानुबंधि और मिथ्यात्वमोहनीय को पृथक् करने पर शेष तेईस प्रकृतियों का संक्रम होता है। __ इस प्रकार विचार करने से चौबीस प्रकृतिक संक्रमस्थान का अभाव है तथा चौबीस की सत्ता वाले सम्यग्दृष्टि के क्षायिक सम्यक्त्व उपार्जित करते जब मिथ्यात्वमोहनीय का क्षय होता है तब सम्यक्त्वमोहनीय के सिवाय बाईस प्रकृतियां संक्रमित होती हैं । यहाँ सत्ता में तेईस प्रकृतियां होती हैं।
अथवा उपशमश्रेणि में वर्तमान औपशमिक सम्यग्दृष्टि जब चारित्रमोहनीय का अंतरकरण करता है तब उसके संज्वलन लोभ का संक्रम नहीं होता है । इसका कारण यह है कि अन्तरकरण करता है तब पुरुषवेद और संज्वलनचतुष्क का अनानुपूर्वी-उत्क्रम से संक्रम नहीं होता है तथा अनन्तानुबंधि का क्षय अथवा सर्वोपशम किया गया होने से उसका संक्रम होता नहीं है और सम्यक्त्वमोहनीय मिश्रमोहनीय तथा मिथ्यात्वमोहनीय की पतद्ग्रह है, अतएव उसका भी संक्रम नहीं होता है । जिससे संज्वलन लोभ, अनन्तानुबंधिचतुष्क और सम्यक्त्वमोहनीय इन छह प्रकृतियों के सिवाय शेष बाईस प्रकृतियां संक्रमित होती है । Private & Personal Use Only
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